समाचार विश्लेषण/केजरीवाल: इक बंगला बने न्यारा 

समाचार विश्लेषण/केजरीवाल: इक बंगला बने न्यारा 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
आजकल ताजमहल से भी ज्यादा धूम मच रही है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सरकारी बंगले की ! सितम्बर , 2020 से जून, 2022 तक इस बंगले की खूबसूरती बढ़ाने के लिये 44,78 करोड़ रुपये खर्च किये गये जिससे इनकी सादगी की पोल खुल गयी । इसे देखते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल बी के सक्सेना ने अधिकारियों को खर्च का लेखा जोखा सुरक्षित रखने का आदेश दिया है , वहीं पंद्रह दिन के अंदर अंदर मामले की रिपोर्ट मांगी है । भाजपा ने केजरीवाल और आप पार्टी पर ये आरोप लगाया है कि लगभग दो वर्षों के दौरान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के नवीनीकरण के नाम पर लगभग 45 करोड़ रुपये खर्च कर दिये गये । इस तरह के पोस्टर भी लगाये जा रहे हैं ।
केजरीवाल के आधिकारिक आवास पर इस तरह खर्च किये गये करोड़ों रुपये एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है । आखिर वह सादगी , सरलता और नयी तरह की राजनीति की बातें कहां हवा हो गयीं ? 
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिये 
कहां चिराग मयस्सर नही शहर के लिये ! (दुष्यंत कुमार)
कहां तो नीली बैगनार में सचिवालय पहुंचे थे अरविंद केजरीवाल और राखी बिड़ला जब एक साधारण ऑटो रिक्शा में सचिवालय पहुंची थी तब लगा था कि देश की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है ।
कोई ताजा हवा चली है अभी 
दिल में इक लहर सी उठी है अभी ! 
लेकिन ऐसा सोचना मुंगेरीलाल के हसीन सपने जैसा साबित हुआ । धीरे धीरे बड़ी बड़ी कोठियां ले लीं और सारी ताम झाम नेताओं जैसी होती चली गयी और अब तक सीधे पैंतालिस करोड़ रुपये बंगले की खूबसूरती पर खर्च कर दिये गये ! 
क्या यह नयी तरह की राजनीति की जा सकती है ? क्या यह ताजा हवा कही जा सकती है ? क्या इससे दिल में कोई लहर उठ सकती है ? नहीं । बिल्कुल नहीं ! यह आम आदमी की बात करते करते कब खास बन बैठे ? हिसार की जिस जिंदल काॅलोनी में रहते अरविंद केजरीवाल पढ़ लिखे और बड़े हुए क्या वे उसे इतनी आसानी से भूल गये ? जब अपने पुराने ठाकुर दास भार्गव स्कूल आये थे सपरिवार तब तो पांव में कैंची चप्पल पहने हुए थे और सुनीता भी बहुत सरल थीं । अब क्या हुआ ? वह मफलरमैन जो सबको प्यारा लगने लगा था , वह कहां खो गया ? हमारी उम्मीदें किस पर लगी थीं और क्या मिला ? 
इस सदन में मैं अकेला ही दीया हूं 
मत बुझाओ 
जब मिलेगी रोशनी 
मुझसे ही मिलेगी ! (रामावतार त्यागी )
हमारी उम्मीद का दीया तो बुझ गया भाई । कहां, किसकी तलाश करें ? 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।