कश्मीर फाइल्ज के बाद केरल स्टोरी 

सिनेमा और राजनिति में नजदीकियां 

कश्मीर फाइल्ज के बाद केरल स्टोरी 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
क्या सिनेमा और राजनीति में नजदीकियां बढ़ती जा रही हैं ? या सिनेमा का इस्तेमाल शुद्ध रूप से राजनीति के लिये किया जाने लगा है ? वैसे स्वतंत्रता के बाद के दिनों से सिनेमा , राजनीति , कलाकार और नेता कोई दूर भी नहीं थे लेकिन एक महीन रेखा थी फिल्मों और राजनीति में जो लगता है कशभीर फाइल्ज और द केरल स्टोरी ने पार कर ली है । तब फिल्म में राजनीति का विचार तो दिखता या अनुभव होता था लेकिन शुद्ध प्रचार नहीं किया जाता था ! मनोज कुमार ने लाल बहादुर शास्त्री के जय जवान, जय किसान नारे से प्रभावित होकर इसी नाम से फिल्म बनानी शुरू की थी , बाद में इसका नाम उपकार कर दिया गया था ! फिल्म अपने समय की ब्लाक बस्टर फिल्म थी ! इसी प्रकार डाकुओं की समस्या को लेकर सुनील दत्त ने मुझे जीने दो जैसी शानदार फिल्म बनाई थी ।
आपातकाल को लेकर किस्सा कुर्सी का बनाई अमृतलाल नाहटा ने लेकिन इसे परदे पर प्रदर्शित  होने का अवसर ही नहीं मिला क्योंकि ऐसी चर्चा रही कि यह श्रीमती इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन को धूमिल कर सकती है । फिर गुलज़ार निर्देशित फिल्म आई आंधी जो इंदिरा गांधी के जीवन को ही रेखांकित कर रही थी लेकिन लेखक कमलेश्वर ने इसे गायत्री देवी यानी सिंधिया परिवार की महारानी के जीवन से प्रभावित बता कर पीछा छुड़ाया ! इस तरह समय समय पर ऐसी फिल्में बनती आई हैं जो सीधे सीधे राजनीति को प्रभावित कर सकती थीं ! 
सन् 2014 के बाद राजनीति और फिल्म में नजदीकियां पहले से ज्यादा बढ़ती दिख रही हैं ! कभी एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर पर खूब चर्चा हुई कि यह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि धूमिल कर रही है ! इसके बाद पंजाब के विधानसभा चुनाव के समय फिल्म आई उड़ता पंजाब जो राज्य में युवा पीढ़ी में बढ़ती नशाखोरी को उजागर कर रही थी और आरोप लगे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर कि यह फिल्म उनके इशारे पर पंजाब की राजनीति को बदनाम करने के लिये बनाई गयी है जबकि तब आप पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ था । फिल्म भी ज्यादा नहीं चल पाई । फिल्म निर्माता को माया मिली न राम ! 
पिछले समय कश्मीर फाइल्ज आई और कश्मीर पर राजनितिक विचारधारा से प्रभावित बताया गया इसे ! फिल्म ने खूब कमाई भी की । दोनों हाथों में लड्डू रहे फिल्म निर्मात्रा और उनकी एक्ट्रेस पत्नी पल्लवी जोशी के ! चर्चा होती रही कि यह फिल्म एक राजनीतिक दल की छवि धूमिल करने और दूसरे दल की छवि चमकाने का गुप्त एजेंडे पर आधारित है ! बात आई गयी हो गयी । फिल्म गयी । कुछ कलाकारों की चर्चा हुई और कुछ चर्चा में आये । अब आई है द केरल स्टोरी फिल्म ! यह फिल्म देखिये पश्चिमी बंगाल में तो बैन की गयी है और उत्तर प्रदेश मे टैक्स फ्री ! इसी से आप अनुमान लगा सकते हो कि यह फिल्म की राजनीतिक दल के एजेंडे को लेकर आई या बनाई गयी ! खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कल  अपने मंत्रिमंडल के साथ फिल्म की स्क्रीनिंग पर मौजूद रहेंगे ! समाजवादी पार्टी के महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते कहा है कि मनोरंजन को मनोरंजन के लिये छोड़ दें ! सिनेमा व साहित्य का प्रयोग अपने जहरीले एजेंडे को थोपने के लिये न करें ! शिवपाल सिंह ने कहा कि नफरत की कोख से उपजी कोई कला राष्ट्र व समाज के लिये शुभ नहीं कही जा सकती ! हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फिल्म का उल्लेख कर्नाटक की चुनावी रैली के दौरान करते कांग्रेस पर निशाना साधने में देर नहीं लगाई थी ! उन्होंने भी कहा था कि यदि कोई प्रस्ताव आता है तो इस फिल्म को राज्य में करमुक्त कर दिया जायेगा । चुनावी रैली में फिल्म का उल्लेख किस तरफ इशारा करता है ? अतीत में यह जरूर है कि कुछ फिल्मों पर प्रतिबंध लगाये गये लेकिन इस तरह जैसे कश्मीर फाइल्ज और द केरल स्टोरी को प्रमोट किया जा रहा है वैसे कदम कभी नही उठाये गये और अब ये कदम खतरनाक हैं ! 
इसी बीच हरियाणा में प्रसिद्ध एक्टर यशपाल शर्मा ने हरियाणा के प्रसिद्ध कलाकार दादा लखमी के जीवन चरित पर आधारित फिल्म बनाई इसी नाम से -दादा लखमी और हरियाणा  की संस्कृति के लिये जाने जाते पंडित लखमी चंद के इस चरित को सामने लाने के लिये सवा तीन करोड़ लगा दिये लेकिन प्रदर्शन के बाद मात्र 34 लाख रुपये ही आये और इस तरह मुम्बई में उन्हें अपना एक घर बेचना पड़ा ! इस फिल्म में कोई राजनीति एजेंडा नहीं था तो इनकी भरपाई के लिये सरकार भी आगे नहीं आ रही ! दूसरी ओर शाहरुख खान की पठान हीरोइन दीपिका पादुकोण की भगवे रंग की चोली पर उठे तूफान ने करोड़ों के क्लब में फिल्म को पहुंचा दिया ! जबकि आमिर खान की लाल सिंह चड्डा को गुप्त प्रचार से फेल करने में सफलता मिल गयी ! 
क्या राजनीति का इस तरह फिल्मों पर सीधे सीधे हस्तक्षेप सही है ? फिल्मों को मनोरंजन से हटकर राजनीतिक एजेंडे के रूप में उपयोग करना कितना सही है ? कहीं ऐसा न हो कि दर्शक कहने लगें :
तेरी दुनिया से मैं हो के मजबूर चला 
मैं बहुत दूर , बहुत दूर चला ! 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।