किरण चौधरी का कांग्रेस से इस्तीफा

देखने गये मगर तमाशा न हुआ....

किरण चौधरी का कांग्रेस से इस्तीफा

-*कमलेश भारतीय
चौ बंसीलाल की पुत्रवधू और पिछले चालीस साल से कांग्रेस में कद्दावर नेता  रहीं पूर्व मंत्री किरण चौधरी ने अपनी बेटी व पूर्व सांसद श्रुति चौधरी के साथ कांग्रेस की प्राइमरी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, फिर भी यह देखा जाये तो कांग्रेस को कोई बड़ा झटका नहीं कहा जा सकता।  हां, एसआरके गुट का एक सशक्त विकेट हिट विकेट जरूर हो गया। जो लोग इसे बड़ा झटका कह रहे या मान रहे हैं, वे भूल में हैं, भ्रम में हैं क्योंकि झटका तब होता जब डेढ़ वर्ष पूर्व आदमपुर उपचुनाव में इस्तीफा दे दिया होता। तब भाजपा ने हरी झ़डी नहीं दी होगी और सही समय का इंतजार करने की सलाह दी होगी। यह इसी वर्ष जनवरी माह की बात है जब ननद सुश्री सैलजा और भाभी किरण चौधरी की जोड़ी यात्रा पर थीं और कभी कभी रणदीप सुरजेवाला भी अपनी पारिवारिक व्यस्ततायें छोड़कर इनके साथ बस में सवार होते। अब ननद भाभी की जोड़ी भी टूट गयी। अब कांग्रेस के अंदर विरोधी  गुट कुछ कमज़ोर पड़ गया। यह झटका कांग्रेस के विरोधी गुट को ज्यादा लगा है और हरियाणा प्रदेश कांग्रेस को कम। यदि वे लोकसभा की टिकट से श्रुति को वंचित किये जाने के बाद इस्तीफा देतीं तो कुछ धमाका होता लेकिन तब तो कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी राव दान सिंह का अंदर ही अंदर विरोध करने के समाचार थे और अब यह टास्क पूरा हो जाने के बाद कांग्रेस को अलविदा कहने का सही समय चुन लिया। दूसरे लोकसभा चुनाव की तरह भाजपा को भी तो कांग्रेस से ही प्रत्याशी खोजने हैं तो दो तो मिल गये, आगे आगे देखिये कौन कौन आता है। लोकसभा चुनाव में आपको याद होगा छह प्रत्याशी कांग्रेस मूल के ही तो थे। अब विधानसभा चुनाव में यही कुछ होने वाला है। भाजपा के साथ नाराज़ कांग्रेसी कमल थाम सकते हैं। भाजपा भी इंतज़ार में है। वैसे चौ बीरेंद्र सिंह जैसे नेता भी हैं जिन्होंने रिवर्स गेयर लगा कर अपनी गाड़ी फिर कांग्रेस मुख्यालय में ही पार्क करना सही समझा। 
हरियाणा प्रदेश कांग्रेस में यह परंपरा बहुत शुरू से ही रही है कि इसमें गुटों में गुट रहते हैं और एक दूसरे की टांग खींचते रहते हैं। कभी चौ बंसीलाल और चौ भजनलाल में छत्तीस का आंकड़ा रहा। कांग्रेस हाईकमान कभी एक को केंद्र में ले जाती मंत्री बना कर तो दूसरे को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना देती लेकिन यह प्रयोग सफल नही हुआ। आखिर चौ बंसीलाल बाहर गये कांग्रेस से और हरियाणा विकास पार्टी बना ली। भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का सुनहरा मौका भी मिला पर आखिरकार कांग्रेस में ही लौटे। फिर चौ भजनलाल व भूपेंद्र सिंह हुड्डा में वही खेल शुरू हुआ और उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद कुलदीप बिश्नोई ने हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन कर लिया। कुछ विधायक जीते भी लेकिन वे कांग्रेस का साथ देने चले गये और कुलदीप बिश्नोई व रेणुका बिश्नोई ही हजकां में रह गये। इस तरह थक हार कर कांग्रेस में ही हजकां का विलय करना पड़ा। कुलदीप बिश्नोई फिर ज्यादा देर कांग्रेस में नहीं टिक पाये और भाजपा में शामिल हो गये सपरिवार। बड़े भाई चंद्रमोहन ने अलग राह पकड़ रखी है और कांग्रेस में ही हैं। इस तरह चौ भजनलाल परिवार के बाद चौ बंसीलाल परिवार अब भाजपा का कमल थामने जा रहा है और हाथ को झटक दिया है। इसी तरह चौ देवीलाल के परिवार से चौ रणजीत चौटाला भी भाजपा का कमल थामकर हिसार से चुनाव लड़े लेकिन सफल नही हुए लेकिन एक रिकॉर्ड तो बन ही गया कि हरियाणा के तीनों लालों के परिवार अब भाजपा से किसी न किसी रूप में आ मिले हैं। 
बेशक किरण चौधरी ने कांग्रेस छोड़ते समय जो अपमान, उपेक्षा और अकेले छोड़ने के जो आरोप लगाये हैं, कांग्रेस को उन पर मंथन करना चाहिए। ‌यदि लोकसभा चुनाव में  किरण चौधरी की गतिविधियां पार्टी विरोधी थीं तो तभी अनुशासनात्मक कदम उठाया जाना चाहिए था न कि चुपचाप देखते रहना चाहिए था। इसी प्रकार समय रहते पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर पर भी कार्यवाही नहीं की गयी थी, जिसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा। कांग्रेस हाईकमान की यह कमज़ोरी भी गुटबाजी की वजह मानी जा सकती है। समय रहते किसी भी पार्टी विरोधी नेताओं पर कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे उनके हौंसले बढ़ते जाते हैं और जब तक वे इस्तीफा देते हैं तब तक कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा चुके होते हैं। इसीलिए यह बड़ा झटका नहीं है क्योंकि नुकसान तो लोकसभा चुनाव में राव दान सिंह की हार से हो ही चुका। अब क्या धमाका और क्या ज़ोर‌ का झटका।
थी खबर गर्म कि गालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े
देखने हम भी गये थे, पर तमाशा न हुआ! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।