‘किसान आन्दोलन ग्राउंड जीरो’ मौजूदा दौर का अहम दस्तावेज
युवा पत्रकार मनदीप पुनिया की किताब का प्रेस क्लब में हुआ लोकार्पण
राजकमल प्रकाशन के उपक्रम ‘सार्थक’ ने प्रकाशित की है ‘किसान आन्दोलन : ग्राउंड जीरो 2020-21 ’
नई दिल्ली। यह पिछले दिनों हुए ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दस्तावेजीकरण का पहला प्रयास है। यह फील्ड रिपोर्टिंग का नायाब नमूना है,मनदीप नौजवान और बेबाक पत्रकार हैं,उन्होंने इस किताब में किसान आंदोलन की डेली डायरी लिखी है।यह किताब हमारे दौर का अहम दस्तावेज है, किसान आंदोलन ऑर्गेनिक आंदोलन था, किसी सियासी पार्टी में यह आंदोलन पैदा करने की कूवत नहीं थी, यह आम जनता ने खड़ा किया था। यह कहना था लेखक मनदीप पुनिया की किताब ‘किसान आन्दोलन ग्राउंड जीरो 2020-21’ के लोकार्पण पर उपस्थित वक्ताओं का।
इस देशव्यापी और देश के इतिहास के सबसे सफल आन्दोलन की निष्पक्ष भाव से पड़ताल करती लेखक मनदीप पुनिया की किताब ‘किसान आन्दोलन ग्राउंड जीरो 2020-21’ का लोकार्पण प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में गुरूवार शाम को हुआ। इस मौके पर वक्ताओं में प्रो मनोज कुमार झा-राज्यसभा सदस्य, प्रो.आनंद प्रधान, एवं डॉ. नवशरण कौर-समाजशात्री -सामाजिक आदि मौजूद रहे।
इस मौके पर बोलते हुए प्रो. आनंद प्रधान ने कहा,“ यह पिछले दिनों हुए ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दासतावेजीकरण का पहला प्रयास है जो दूसरों को भी प्रेरित करेगा।पुनिया ने जिस हरियाणवी की छौंक वाली जीवंत भाषा में यह किताब लिखी है वह हिंदी की परिधि का विस्तार करती है । फणीश्वरनाथ रेणु की याद दिलाती है, यह फील्ड रिपोर्टिंग का नायाब नमूना है। मनदीप ने अपनी जमीनी रिपोर्टिंग के जरिये न केवल देश दुनिया को भारतीय किसानों की समस्याओं से, उनके संघर्ष से अवगत कराया है, बल्कि पत्रकारिता में व्याप्त मौजूदा जड़ता को तोड़ती है और जनांदोलनों से जोड़कर उसको नया तेवर और अर्थवत्ता प्रदान करती है।जब आज के समय में पत्रकारिता सिर्फ 200-300 शब्दों के बीच में सिमट के रह गयी है़ ऐसे समय में मनदीप पुनिया ने धैर्य रखकर विस्तार से एक इतनी लंबी किताब लिख डाली है।”
डॉ. नवशरण कौर ने कहा, “मनदीप नौजवान और बेबाक पत्रकार हैं। उन्होंने इस किताब में किसान आंदोलन की डेली डायरी लिखी है, उन्होंने जमीनी रिपोर्टिंग की है। यह गौर करना चाहिए कि मनदीप ने किनकी तरफ खड़े होकर यह रिपोर्ताज लिखा है, इस किताब से उन्होंने अपेक्षाएं बढ़ा दी है।
किसान आंदोलन में अनेक संगठन शामिल थे, उनके बीच मतभेद भी थे पर उन्होंने तमाम मुश्किलों के बीच एकता बनाये रखी, इसको रेखांकित किया जाना चाहिए। किसान जत्थेबंदियों का लम्बा इतिहास है, वे आज भी संघर्षरत हैं, उसमें बुजुर्ग से लेकर युवा सभी सक्रिय रहे हैं। उनको विभाजित करके नहीं देखा जाना चाहिए। मनदीप ने बहुत मेहनत से यह किताब लिखी है, उन्होंने ग्राउंड रिपोर्ट लिखी है । उम्मीद है वे यह भी लिखेंगे कि जिस ग्राउंड की रिपोर्ट उन्होंने दी वह ग्राउंड किस तरह तैयार हुई। यह सिक्खों का आंदोलन नहीं था ,यह देश के उन किसानों का आंदोलन था जो अपने हक के लिये लड़ रहे थे”।
प्रो. मनोज कुमार झा ने कहा, “ मनदीप ने जो देखा वह लिखा है. मैं राजकमल प्रकाशन समूह को भी धन्यवाद देता हूँ कि वह ऐसे दौर में ऐसे विषयों पर लगातार किताबें छाप रहे हैं जब यह खासा जोखिम भरा हो गया है।यह किताब हमारे दौर का अहम दस्तावेज है। किसान आंदोलन ऑर्गेनिक आंदोलन था, किसी सियासी पार्टी में यह आंदोलन पैदा करने की कूवत नहीं थी, यह आम जनता ने खड़ा किया था। किसान आंदोलन ने सत्ता के शीर्ष पर बैठे बहुमत का दम्भ रखने वालों को झटका दिया। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष सिर्फ सदन में ही नहीं होता है, जब जरूरत महसूस होगी वह आपको सड़क पर भी दिखेगा और ऐतिहासिक किसान आंदोलन इसका उदाहरण है। इसके बाद उन्होंने तीन कृषि कानूनों के पारित होने के दिन सदन के माहौल को याद किया। आखिर में उन्होंने कहा कि बहुत अच्छा होता अगर हम संसद की इमारत के अंदर ही देश की सभी समस्याओं का हल ढूंढ पाते, पर अब यह सम्भव नहीं रह गया है।
लेखक मनदीप पुनिया ने कहा, “यह किताब इसलिए लिखनी शुरू कि ताकि किसानों का सरकार के प्रति गुस्सा, उनके नेताओं की सरकार के साथ इंटरेक्शन, सरकार का उनके प्रति रवैया और खुद किसानों की किसान नेताओं के साथ इंटरेक्शन को समझा जा सके. यह एक रिपोर्ताज है, जिसमें मैंने किसान आंदोलन की शुरुआत से लेकर आखिर तक, हर जरूरी पहलू को कवर करने की कोशिश की है.”
इस अवसर पर अपने विचार रखते राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा, “समाज लगातार बदल रहा है. हरेक बदलाव के साथ कई सवालों के जवाब मिल जाते हैं तो कुछ नए सवाल, कुछ नए मुद्दे सामने आ जाते हैं. ऐसी हलचलों से, ऐसे मुद्दों से अपने पाठकों को अवगत कराना हम जरूरी समझते हैं. समाज की लोकतांत्रिक बुनियाद की मजबूती का संकेत उसमें होने वाले
में बहस मुबाहिसों से मिलता है. बहस मुवाहिसे बेहतर समाज के लिए आवश्यक हैं. इन्हीं सोच के कारण हमने 'सार्थक' से मनदीप पुनिया की यह किताब छापी. 2020-21 का किसान आंदोलन आजादी के बाद की सबसे अहम घटनाओं में से एक साबित हुआ. ऐसी किसी भी महत्वपूर्ण परिघटना के बारे में पाठकों को जानकारी देना हमारी प्राथमिकता में रहा है. अपने 75 साल की यात्रा में राजकमल प्रकाशन ने अपनी प्राथमिकता से कभी किनारा नहीं किया. मनदीप की किताब का प्रकाशन इसका नवीनतम प्रमाण है.”
किताब के बारे में
लेखक मनदीप पुनिया की यह किताब पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ और करीब पूरे देश के किसानों द्वारा मुख्य रूप से 2020 में भारतीय संसद द्वारा पारित तीन कृषि अधिनियमों के विरुद्ध चल रहे विरोध की गहन पड़ताल करती है। क्या था किसान आन्दोलन, जिसकी धमक दिल्ली और देश ही नहीं, विदेशों तक महसूस की गई। कैसे वह शुरू हुआ, कैसे वह आगे बढ़ा, और कैसे वह जीता! कैसे पूर्ण बहुमत के शिखर पर फूली बैठी सरकार को उसने झुकने पर मजबूर किया! यह किताब इन सभी सवालों का जवाब देती है, लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं। ‘किसान आन्दोलन : ग्राउंड जीरो 2020-21’ उस ऊबड़-खाबड़ से भी गुजरती है जिसे किसी भी स्वत:स्फूर्त आन्दोलन के लिए स्वाभाविक कहा जा सकता है; और उन खास बिन्दुओं पर भी उँगली रखती है जो इसी आन्दोलन की विशेषता हो सकते थे। बदलते-उठते ग्रामीण भारत के सामन्ती अवरोध, अगुआ नेताओं की महत्त्वाकांक्षाएँ, पीढ़ियों के टकराव, लिंग, वर्ण, वर्ग और जाति के विभाजन, भय, साहस और रूमान की उलझनें—यह सब इस आन्दोलन की तहों में सक्रिय था; और यह रिपोर्ताज जिसे विभिन्न आन्दोलनों के साक्षी रहे युवा पत्रकार मनदीप पुनिया ने किसान मोर्चों के बीचोबीच रहने के बाद लिखा है, इन ओझल कोनों की भी निष्पक्ष भाव से पड़ताल करता है।
लेखक परिचय :
हरियाणा के ठेठ पहलवानों के गाँव खुडण के किसान परिवार में 9 जुलाई, 1993 को जन्मे मनदीप पुनिया ने पंजाब विश्वविद्यालय से बी.ए. किया और भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई की। उन्होंने ‘जनपथ’, ‘द कारवां’, ‘आउटलुक’, ‘द वायर’, ‘न्यूजलॉन्ड्री’, ‘मीडिया विजिल’, ‘डाउन टू अर्थ’ और कई अन्य संस्थानों के साथ स्वतंत्र पत्रकारिता की है। इन दिनों उनके दो यूट्यूब चैनल ‘गाँव सवेरा’ और ‘मनदीप पुनिया अनप्लग्ड’ चर्चा में हैं।