समाचार विश्लेषण/ये कुंभ मेले कभी कम न होंगे अफसोस तुम न होंगे
-कमलेश भारतीय
कुंभ मेले को लेकर अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साधु समाज से निवेदन किया है कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए 27 अप्रैल को प्रतीकात्मक स्नान किया जाये जिसे अवधेशानंद गिरि ने फोन पर बातचीत के बाद स्वीकार कर लिया । इसके बावजूद बैरागी सम्प्रदाय के अखाड़ों के महंतों ने कहा कि वे लोग चैत्र पूर्णिमा का शाही स्नान करके हरिद्वार से जायेंगे । हम प्रधानमंत्री का सम्मान करते हैं लेकिन प्रतीकात्मक स्नान नहीं होता । कुंभ में तो गंगा जी साक्षात बहती हैं । हम तो चैत्र अमावस्या का शाही स्नान करके ही हरिद्वार से वापस जायेंगे । धर्मदास महाराज ने ज़ोर देकर कहा कि गंगा जी का प्रतीकात्मक स्नान नहीं होता । गंगा तो साक्षात बहती है । अब बताइए क्या चित्रकूट से चलते समय कपिल जी ने सोचा होगा कि यह उनका आखिरी कुंभ साबित होने जा रहा है ? वे कोरोना संक्रमित हुए और स्वर्ग सिधार गये । सीधी मुक्ति मिली । पर जो बच सकते हैं , वे कोरोना की चेतावनी क्यों नहीं सुन पा रहे , समझ पा रहे ? संत रविदास हरिद्वार न जा पाये थे और कठौती में गंगा के दर्शन किये और करवा दिये थे । साक्षात गंगा जी के दर्शन और शाही स्नान क्या कोरोना महामारी से ज्यादा जरूरी है ? यह आस्था, विश्वास नहीं माना जायेगा , यह तो इससे अलग ही माना जायेगा । संत समाज कुंभ मेले के समापन की पूर्ण घोषणा करे ताकि इनके अनुयायी भी घर लौट जायें । हालांकि धर्मदास जी कह रहे हैं कि संतों का काम कुंभ में भीड़ जुटाना नहीं लेकिन भीड़ तो जुटी हुई है और इसे सही संदेश देकर लौटाना आपका धर्म बनता है । जब तक भीड़ है तब तक कोरोना खुश है और दिन प्रतिदिन हरिद्वार में संक्रमण बढ़ता जा रहा है जो गंगा के शाही स्नान के बाद देश भर में फैलेगा । यह निश्चित है । इसमें कोई संदेह नहीं ।
इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यही संदेश पश्चिमी बंगाल में क्यों नहीं देते , जहां वे खुद रैलियां करने जाते हैं । वहां भी प्रतीकात्मक रैलियां करने का संदेश दें तो इनकी गंभीरता समझ आये । ये दो अलग अलग मापदंड क्यों ? क्या चुनावी रैलियां कोरोना मुक्त हैं ? क्या वहां कोरोना के निर्देशों का कोई पालन करता दिखाई देता है? आखिर चुनाव ज्यादा जरूरी हैं या जनता की जान माल की सुरक्षा ? प्रधानमंत्री जी , ज़रा पश्चिमी बंगाल की स्थिति पर भी समीक्षा और चिंतन कीजिए और वहां भी संदेश जारी कीजिए । ममता बनर्जी और दूसरे नेताओं को भी रैलियां रोक देनी चाहिए । यही राजधर्म है । यही समय की पुकार है और आप समय की नज़ाकत को देखते रैलियां और रोड शो बंद करवा दीजिए । चुनाव आते रहेंगे और कुंभ मेले भी ।
कुंभ मेले आते रहेंगे
ये कुंभ मेले कभी कम न होंगे
पर अफसोस हम न होंगे
अफसोस तुम न होंगे ।