ऐसे थे तुम
बरसों बीत गये इस बात को । जैसे कभी सपना आया हो । अब ऐसा लगता था । बरसों पहले काॅलेज में दूर पहाड़ों से एक लड़की पढ़ने आई थी । उससे हुआ परिचय धीरे धीरे उस बिंदु पर पहुंच गया जिसे सभी प्रेम कहते हैं ।
फिर वही होने लगा । लड़की काॅलेज न आती तो लड़का उदास हो जाता और लड़का न आता तो लड़की के लिए काॅलेज में कुछ न होता । दोनों इकट्ठे होते तो जैसे कहीं संगीत गूंजने लगता , पक्षी चहचहाने लगते ।
फिर वही हुआ जो अक्सर प्रेम कथाओं का अंत होता है । पढ़ाई के दौरान लड़की की सगाई कर दी गयी । साल बीतते न बीतते लड़की अपनी शादी का काॅर्ड देकर उसमें आने का न्यौता देकर विदा हो गयी ।
लड़का शादी में गया । पहाड़ी झरने के किनारे बैठ कर खूब खूब रोया पर ,,,झरने की तरह समय बहने लगा ,,,बहता रहा । इस तरह बरसों बीत गये ,,इस बीच लड़के ने आम लड़कों की तरह नौकरी ढूंढी , शादी की और उसके जीवन में बच्चे भी आए । कभी कभी उसे वह प्रेम कथा याद आती । आंखें नम होतीं पर वह गृहस्थी में रम जाता और कुछ भूलने की कोशिश करता ।
आज पहाड़ में घूमने का अवसर आया । बस में कदम रखते ही उसे याद आया कि बरसों पहले की प्रेम वाली नायिका का शहर भी आयेगा । उत्सुक हुआ वह कि वह शहर आने पर उसे कैसा कैसा लगेगा ? आकुल व्याकुल था पर,,,कब उसका शहर निकल गया,,, बिना हलचल किए , बिना किसी विशेष याद के ,,,क्योंकि वह सीट से पीठ टिकाये चुपचाप सो गया था ,,,जब तक जागा तब तक उसका शहर बहुत पीछे छूट चुका था ।
वह मुस्कुराया । मन ही मन कहा कि सत्रह बरस पहले एक युवक आया था , अब एक गृहस्थी । जिसकी पीठ पर पत्नी और गुलाब से बच्चे महक रहे थे । उसे किसी की फिजूल सी यादों और भावुक से परिचय से क्या लेना देना था ?
इस तरह बहुत पीछे छूटते रहते हैं शहर, प्यारे प्यारे लोग , ,उनकी मीठी मीठी बातें,,,,आती रहती हैं ,,,धुंधली धुंधली सी यादें और अंत में एक जोरदार हंसी -अच्छा । ऐसे थे तुम । अच्छा ऐसे भी हुआ था तुम्हारे जीवन में कभी ?
-कमलेश भारतीय