लघुकथा/इन्साफ/मनोज धीमान

लघुकथा/इन्साफ/मनोज धीमान
मनोज धीमान।

उसकी शादी को तीन साल हो चुके हैं। पिछले तीन सालों में उसकी दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी है। एक दिन अचानक पत्नी की तबियत खराब हुई तो उसे डॉक्टर के पास ले गया। उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी। सुन कर उसे झटका लगा। अस्पताल में इलाज शुरू किया गया। आज भी वह पत्नी को साथ लेकर अस्पताल आया था। एक बार फिर रेडियोथेरेपी होनी थी। विवाह के समय कितनी खूबसूरत थी उसकी पत्नी। गोरा चिट्टा रंग। काले लम्बे बाल। तीखे नैन नक्श। हर कोई उसकी पत्नी की तारीफ़ कर रहा था। सुनकर उसका सीना चौड़ा हो जाता। ऐसे लगता मानो उसने पूरी दुनिया जीत ली हो। अब उसकी सारी खुशियों को ग्रहण लग चुका था। वह धरातल पर था। उसकी पत्नी की काया का रंग बेरंग हो चिका था। बालों की रंगत कहीं खो गई थी। उसने एक बार पत्नी की और देखा। दिल चाहता था कि रो ले। लेकिन उसे रोना भी नहीं आ रहा था। कैसे बदनसीबी थी उसकी। अस्पताल में दाखिल होते ही उसने पत्नी को एक चेयर पर बैठाया और रिसेप्शन की ओर चला गया। रिसेप्शनिस्ट फ़ोन पर किसी से बात कर रही थी। उसकी नज़रें झुकी हुई थीं। उसने ध्यान से देखा। अरे, यह तो शालिनी है। वही शालिनी जिसके विवाह का प्रस्ताव उसके लिए आया था। मगर उसने साफ़ इंकार कर दिया था। दलील यह दी थी कि शालिनी का रंग सांवला है और बाल भी घने नहीं हैं। क्या ये वही शालिनी है? उसने मन ही मन सोचा। उसने एक बार फिर गौर से शालिनी को देखा। शालिनी कितनी बदल गई है।  कितनी खूसूरत लग रही है। रंग सांवला होते हुए भी चेहरा कितना खूबसूरत लग रहा है। बाल भी कितने घने हो गए हैं। पूरी पर्सनालिटी में निखार आ चुका है। शालिनी से सामना करने की उसमें हिम्मत नहीं थी। वह अभी भी नज़रें नीचे किये हुए फ़ोन पर बात किये जा रही थी। उसने काउंटर छोड़ दिया। दूसरे काउंटर पर लगी कतार में जा कर खड़ा हो गया। कतार में खड़ा हुआ वह कंपकंपा रहा था। मुँह में लगातार बुदबुदाए जा रहा था - शालिनी, प्लीज मुझे माफ़ कर दो...शालिनी, प्लीज मुझे माफ़ कर दो...