लघुकथा/जल्दबाजी/कमलेश भारतीय द्वारा
किसी सहकर्मी की मां के अचानक स्वर्गवास हो जाने का समाचार कार्यालय पहुंचा । शिफ्ट रोक कर सब लोग जा नहीं सकते थे । इसलिए जिनकी शिफ्ट पूरी हो गयी थी , वे प्रतिनिधियों के रूप में अंतिम संस्कार में शामिल होने चल दिए ।
घर के बाहर भीड़ थी और अंदर विलाप । एक किनारे शव ले जाने के लिए शवदाहगृह की गाड़ी खडी थी । दूसरे किनारे ड्राइवर । वह मजे में बीडी के कश खींच रहा था । उसे न घर में होने वाले विलाप से मतलब था और न ही शोक संतप्त चेहरों से कुछ लेना देना था । वह तो बार बार घड़ी देख रहा था और हाथ मल रहा था ।
पार्थिव शरीर बाहर लाया गया तो बेटी से रहा न गया । वह लिपट कर रोने लगी । अभी रिश्ता जीवित जो था । पंडित बेटे को बुलाकर मंत्रोच्चारण करने लगा ।
इसी बीच ड्राइवर का धैर्य चुक गया । वह वहीं से चिल्लाया - जल्दी करो । यह रोना-धोना, पूजा-पाठ श्मशानघाट जाकर कर लेना । मुझे अगली अर्थी भी उठानी है ।
उसकी इस जल्दबाजी से सब हक्के-बक्के रह गये ।