लघुकथा/मैं महात्मा बुद्ध नहीं/कमलेश भारतीय
हमारे घर एक बिल्ली का बच्चा बारिश में भीगता हुआ पहुंच गया । बेटी ने उस ठंड से कांपते बच्चे को देखा और बताया कि इसके पैर में चोट लगी है । खून टपक रहा है ।
मैंने डिटोल की शीशी उठाई और थोडी सी रूई भी ली । मैं घबराता सा उस बिल्ली के बच्चे के पास गया । मुझे लगता रहा था कि यह बच्चा डर कर जैसे तैसे लंगड़ाता भाग जायेगा । पर हैरानी की बात कि वह भागा नहीं । मैंने रूई से टपक रहे खून को साफ किया और थोड़ी सी डिटोल लगा दी । थोडे दर्द के बाद वह धीरे-धीरे बारिश में भीगता कहीं खो गया ।
एक महात्मा बुद्ध थे । जिन्होंने ऐसे ही शिकार से घायल हंस को बचाया था । घावों पर मरहम लगाया था । चचेरे भाई ने महाराज शुद्धोधन को शिकायत की थी । यह शिकार मेरा था । महाराज ने हंस को भरे दरबार में छोड दिया । सब जानते हैं कि हंस उडकर महात्मा बुद्ध की गोद में बैठ गया था । पर मैं महात्मा बुद्ध नहीं और न ही इसका इस बात से कोई संबंध है ।
पर मजेदार बात यह है कि वह बिल्ली का बच्चा उसके बाद भी आता रहा । मैं उसके घाव पर बेटी की मदद से डिटोल लगाता रहा । वह डिटोल लगवा कर उसी तरह गायब हो जाता । कुछ दिनों में उसका घाव ठीक हो गया । फिर उसकी म्याऊं म्याऊं भी कहीं खो गई । पर मैं कहता हूं कि मैं महात्मा बुद्ध नहीं । इसलिए वह बिल्ली का बच्चा ठीक स्वस्थ होकर गायब होकर गया ।