अश्विनी जेतली की क़लम से इस सप्ताह की `ग़ज़ल'
`सिटी एयर न्यूज़' के पाठकों के लिए विशेष
आर्ट वर्क- गरिमा धीमान।
कैसा है यह मंज़र ज़ालिम कैसी अदभुत बात हुई
शहर में छाया सन्नाटा है जैसे दिन में रात हुई
वो ही इक पल आँख से मेरी ओझल ना हो पाता है
जिस पल ने था लूटा मुझको, उस पल से मुलाक़ात हुई
याद वो आये छम छम करते और हुआ कुछ ऐसा कि
अश्कों में गई डूब नगरिया वो समझे बरसात हुई
दूर से मिलना पास ना आना इक दूजे से कहते हैं
कोरोना का कहर है बरपा बस से बाहर बात हुई
दूषित किया था जिनको हमने हवा-ओ-पानी साफ़ हुए
फिर से सुंदर और सुहानी देखो अब कायनात हुई।