ग़ज़ल

ग़ज़ल
अश्विनी जेतली।

नज़ारे तो बहुत होंगे मगर, मेरी नज़र में तो 
तुम्हारी दीद से बढ़कर नजारा हो नहीं सकता

ज़माने भर की रुसवाईयां हमें कबूल हैं, लेकिन
तुम दिल से दूर कर दो, ये गवारा हो नहीं सकता

जहां आकर ज़माने भर के दुखड़े दूर हो जाएं
कोई उस दर से बेहतर हो सहारा, हो नहीं सकता

तू नहीं तो और, ये इस दौर का चलन, लेकिन
इश्क इक बार होता है, दोबारा हो नहीं सकता

तुम्हारे ग़म की दौलत से जो मालामाल हो बैठा
वो तेरे हिज्र का मारा तो, बेचारा हो नहीं सकता

-अश्विनी जेतली