समाचार विश्लेषण/लाठीचार्ज और किसान आंदोलन
-* कमलेश भारतीय
करनाल में जिस तरह से प्रदर्शनकारी किसानों पर बड़ी बेरहमी से लाठीचार्ज हुआ उसकी गूंज पूरे देश में सुनी गयी है । ऊपर से जो आदेश एसडीएम महोदय के सामने आ रहे हैं कि जो भी किसान प्रदर्शन करने आए उसका सिर फोड़ देना , बिल्कुल ही जलियांवाला कांड की याद दिलाता है । क्या जनरल डायर ने भी ऐसे ही आदेश दिये होंगे ? आज अंदाजा लगा सकते हैं हम सब । करनाल को जलियांवाला बाग कांड जैसे बना दिया , वह करनाल जो सीएम सिटी कहलाने का गौरव पाये हुए है । मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने व्यथित होकर कहा कि सीएम ऐसी जगहों पर ही कार्यक्रम कर रहे हैं जहां वे जानते हैं कि रिएक्शन होगा । उन्होंने यह भी कहा कि एसडीएम नौकरी में रहने लायक नहीं है । यहां तक कहा कि मुख्यमंत्री खट्टर यह महाभारत न छेड़ें तो ठीक है । इस समय चुनाव भी नहीं । मुख्यमंत्री जानबूझ कर करनाल, जींद व रोहतक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बैठकें रख रहे हैं जहां उनको पता है कि रिएक्शन होगा । इससे नेतृत्व को नुकसान पहुंचेगा । इस अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए ।
दूसरी ओर राकेश टिकैत ने भी कहा कि ऐसे निर्देश बिना सरकार की सहमति से नहीं दिये जा सकते । सीएम को आगे भी विरोध का सामना करना पड़ेगा । किसानों ने सिर्फ बीस मिनट रास्ता जाम किया था लेकिन सरकार ने लाठीचार्ज जैसा कदम उठा लिया और इसके विरोध में सारे हाईवे बंद हो गये । टिकैत ने कहा कि वे दिन दूर नहीं जब बीस दिन तक जीटी रोड पर जाम होगा । दीपेंद्र हुड्डा ने भी कल दिन भर अपने दौरे के दौदिन इस लाठीचार्ज को निशाने पर रखा और सरकार को भी ।
किसानों से उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने सवाल किया कि व्यवस्था बिगाड़ने का केद्र हरियाणा को ही क्यों बनाया जा रहा है , पंजाब को क्यों नहीं ? किसानों से सवाल पूछ लिया लेकिन एसडीएम से पूछा कि किसके आदेश पर लाठीचार्ज किया ? बताया जा रहा है कि एसडीएम दूर निकट से राज्यसभा सांसद राकेश का रिश्तेदार है यानी रक्त में ही आर एस एस के संस्कार या घुट्टी मिली हुई है पर यहां तो सरकार को सांसत में डाल दिया न । सरकार में आकर तो लोकतंत्र में और लोकतंत्र के अनुसार कार्य करना चाहिए न कि किसी विचारधारा का पक्ष लेना चाहिए ।
अभी बात निकली है करनाल से और दूर तलक जायेगी इसमें कोई शक नहीं । सरकार डैमेज कंट्रोल की कोशिश में है और करना भी चाहिए । पर लाठीचार्ज कोई हल नहीं और न ही इससे किसान आंदोलन रुक सकता है । अपनी रणनीति पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।