'सतरंगी दस्तरख्वान - बहुसांस्कृतिक जीवन और खानपान' पुस्तक का लोकार्पण

'सतरंगी दस्तरख्वान - बहुसांस्कृतिक जीवन और खानपान' पुस्तक का लोकार्पण

नई दिल्ली, 23 सितम्बर, 2023: राजकमल प्रकाशन एवं तक्षशिला एजुकेशन सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में  'सतरंगी दस्तरख्वान - बहुसांस्कृतिक जीवन और खानपान'  का  लोकार्पण  शुक्रवार शाम स्पीकर्स हॉल,कांस्टीट्यूशन क्लब, रफ़ी मार्ग  में हुआ। इस पुस्तक का संपादन सुमना रॉय व कुणाल रे और अनुवाद वन्दना राग व गीत चतुर्वेदी ने किया है। पुस्तक लोकार्पण के बाद हुई बातचीत में 'ऑन ईटिंग' के सुमना रॉय, कुणाल रे, ज्ञानपीठ सम्मानित कोंकणी लेखक दामोदर मावजो, प्रसिद्ध गायिका कलापिनी कोमकली, नाट्यकर्मी नीलम मानसिंह चौधरी, आशुतोष भारद्वाज एवं अनुवादक वंदना राग ने अपने विचार व्यक्त किए।

'सतरंगी दस्तरख्वान - बहुसांस्कृतिक जीवन और खानपान' इस अर्थ में एक निराली पुस्तक है कि इसमें कई जानी-मानी हस्तियों के आलेख हैं जिन्होंने अपने जीवन से जुड़े खानपान के प्रसंगों को बड़े सुंदर तरीके से इसमें संजोया है। इस किताब में शामिल लेखक न सिर्फ भारत के भिन्न क्षेत्रों से हैं, बल्कि उन्होंने कला और साहित्य के अपने-अपने क्षेत्रों में भी विशेष पहचान हासिल की है। उनमें से कुछ ने अपनी मादरी जुबान और कुछ ने अंग्रेजी में ये अनुभव लिखें हैं, जिन्हें हिंदी में अनूदित किया गया है।इस पुस्तक को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

हिंदुस्तानी संगीत की प्रसिद्ध गायिका कलापिनी कोमकली ने इस मौके पर कहा “ कोविड का दौर था हम सब अपने घरों में कैद थे। मुझे कुणाल का कॉल आया कि क्या मैं अपने जीवन से जुड़े खानपान को लेकर कुछ लिखना पसंद करूंगी?यहां यह स्पष्ट कर दूं की भोजन विधि नही बतानी थी, बल्कि खानपान से जुड़े रोचक प्रसंग और आदतों का महत्व था। मैंने कुछ समय मांगा, क्योंकि लिखना मेरा विषय नहीं है, मेरा विषय गायन है। लेकिन यह विषय रोचक था तो "भानुकुल का रसोई राग" शीर्षक से अपनी बात लिख दी।” कलापिनी कोमकली ने पुस्तक से एक रोचक अंश का पाठ भी किया और अपने पिता कुमार गंधर्व के खानपान से जुड़े कुछ किस्से भी पाठकों से साझा किए।

कोंकणी के वरिष्ठ कथाकार दामोदर मावजो ने इस अनोखी किताब में अपने योगदान के अनुभव को साझा करते हुए ब्रेड के भारत आने औए उसके लोकप्रिय होने के इतिहास पर संक्षेप में रोशनी डाली।

नाट्यकर्मी नीलम मान सिंह ने कहा “ मैं रोटी बनाने की प्रक्रिया से बहुत आश्चर्यचकित थी... बीज पीसने से लेकर आटे में पानी मिलाने तक। यह बहुत ही आश्चर्यजनक प्रक्रिया थी।उन्होंने खाना पकाने की तुलना थिएटर से करते हुए कहा- कच्चे पकौड़े या कच्ची जलेबी परोसना दर्शकों को कच्चा नाटक परोसने जैसा है।"

संपादक कुणाल रे  ने अपने विचार रखते हुए कहा कि "मैं और सुमना खाने के बहुत शौकीन हैं। हम अक्सर खाने पर बातें करते रहते हैं। कोविड के दौरान भी हम एक दूसरे से बात करते रहते थे और बातें खाने की ही होती थीं। जब हम एक साथ मिले तो हमने सोचा कि क्यों न खाने पर कुछ  हटकर करें और यहीं से हमने ऑन ईटिंग ब्लॉग शुरू किया जो आज किताब के रूप में आपके सामने है।"

 

संपादक सुमना रॉय  ने कहा, “हिन्दी किताब के लिये हम बहुत उत्साहित थे। यह किताब राजकमल प्रकाशन से बहुत सुंदर तरीके से प्रकाशित हुई है। जो कहानियां लोगों की पहुंच से दूर थीं वे इस किताब के माध्यम से अब उन लोगों के लिए भी उपलब्ध हैं।"'रस' की व्याख्या करते हुए उन्होंने भाषा और भोजन की विविधता का हवाला देते हुए कहा कि इन दोनों  की एक ही ज़मीन है- हमारी जीभ।

आशुतोष भारद्वाज ने अपने पत्रकारिता के दौरान नक्सलियों के साथ बिताए गये समय और उनके खाने के बारे में अपने अनुभव साझा किये।

इस पुस्तक की अनुवादक और सुपरिचित कथाकार वंदना राग  ने कहा कि इस किताब में खाने के बहाने दुख, दर्द और खुशियाँ बयान की गयी हैं।  उन्होंने अनुवाद के अपने अनुभव पर बात करते हुए कहा कि  'ट्रांसलेशन क्लोज़ टू द ऑरिजिनल' होना चाहिये। इस किताब के लिये बहुत सारे क्षेत्रों के  स्थानीय एथोस को हिन्दी में लाना एक बड़ा चेलेंज था मगर इसमें मजा आया।

समारोह के अंत में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने पुस्तक के संपादकों, लेखकों और उपस्थित श्रोतागण का धन्यवाद किया और एक प्रकाशक के रूप में विविध विषयों पर स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।