समाचार विश्लेषण/नेता और किसान आंदोलन
-कमलेश भारतीय
किसान आंदोलन चलते छह माह बीत गये । न सरकार ऑफ से मस औ, न किसान बाॅर्डर से उठ कर अपने घर लौटे । एकदम डेडलाॅक । कोई वार्ता नहीं । कोई न्यौता नहीं । कोई दूरी नहीं , कोई निकटता नहीं । बस। सरकार और आंदोलन चलते जा रहे हैं अपनी अपनी राह पर । अभी हरियाणा इसका केंद्र बनता जा रहा है । राकेश टिकैत के हरियाणा दौरे बढ़ते जा रहे हैं । पहले योगेंद्र यादव ज्यादा सक्रिय रहे हरियाणा में लेकिन अब टिकैत सक्रिय हैं । कभी कभार टिकैत और चढूनी में मन मुटाव हो जाता है । जैसे पहले टिकैत कुरुक्षेत्र आए तो चढूनी नही गये यह कह कर कि उनके पहले से प्रोग्राम तय हैं । अब टोहाना प्रकरण पर भी टिकैत और चढूनी की बोली पहले अलग अलग हुई और फिर चढूनी ने यू टर्न लिया और अब टिकैत , चढूनी और योगेंद्र यादव सभी एक साथ टोहाना में डेरा लगाये बैठे हैं । बेशक विधायक देवेंद्र बबली ने माफी मांगने का ऑडियो जारी कर दिया और आंदोलन वापस भी होने लगा था कि प्रशासन ने केस वापस नहीं लिए और ये किसान नेता फिर से डेरा लगा कर बैठ गये । यही प्रशासन की चूक या चालाकी कही जा सकती है । आंदोलन खत्म होते होते कोई न कोई भूल कर बैठते हैं ।
आप इसका बड़ा उदाहरण लीजिए । जब राकेश टिकैत को लगभग गिरफ्तार किया जाने वाला था और आंदोलन खत्म होने की कगार पर था तभी टिकैत ऐसे रोये कि रात की रात बाजी पलट गयी और आंदोलन को मानो संजीवनी मिल गयी । आंदोलन जो बिल्कुल समाप्त होने की कगार पर था , वह आंदोलन पहले से ज्यादा तेज़ी पकड़ गया । यह प्रशासन की गलती से हुआ जो तत्काल अपने आक़ा को खुश करना चाहता था कि लीजिए हमने टिकैत को गिरफ्तार कर लिया । अरे कोई गैंगस्टर थोड़े है राकेश टिकैत । वे यानी राकेश टिकैत एक बड़े आंदोलन का बड़ा चेहरा व किसानों में हरमन प्रिय है । फिर इतनी जल्दी कैसी मचा दी ? इसीलिए तो टिकैत के आंसू प्रधानमंत्री के आंसुओं पर भारी पड़े । कहा भी टिकैत ने कि आंसुओं में फर्क है । मेरे आंसू जनता के आंसू हैं । प्रधानमंत्री के आंसू फर्जी ।
हरियाणा सरकार भी लगातार यही गलती दिन प्रतिदिन दोहराती जा रही है । टिकैत के पांव भी हरियाणा में मजबूत होते जा रहे हैं । टोहाना से पहले दो दिन हिसार के रामायण टोल पर बिताये । अब टोहाना में कितने दिन ? प्रशासन ही जानता है या सरकार । दो युवकों पर केस हटेगा तभी ये किसान नेता हटेंगे । सरकार को दिशा निर्देश देने हैं । हिसार के केस अभी वापस नहीं हुए । एक माह का वादा है । समझौता है । सरकार को चिंतन मनन करना चाहिए । कल विश्व पर्यावरण दिवस पर किसानों ने हर सत्ताधारी विधायक के आवास के बाहर प्रदर्शन किये और कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं । कोई तो , कभी तो अंत होगा इस आंदोलन का ?