शांता कुमार के त्याग से सीखो/कमलेश भारतीय
शांता कुमार हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंदीय मंत्री हैं । प्रेम कुमार धूमल से पहले उन्होंने ही भाजपा की सरकार हिमाचल में बनाई । मुझे इनसे मुलाकात का अवसर मिला दैनिक ट्रिब्यून के प्रथम कथा कहानी समारोह के समय । तब वे हिमाचल के मुख्यमंत्री थे और हमारे संपादक विजय सहगल भी हिमाचल के मूल निवासी । उन्होंने पहला समारोह शिमला में करने का निर्णय किया । गेयटी थियेटर में । मुझे अपने साथ लेकर गये । मैंने एंकरिंग की । शिक्षामंत्री राधा रमण शास्त्री हमें शाही मेहमान यानी स्टेट गेस्ट बना कर ले गये और वही हमें कार में गेयटी थियेटर तक लेकर आए । यह जिक्र इसलिए कि मुख्यमंत्री शांता कुमार स्वयं लेखक हैं । इनके उपन्यास समाचारपत्रों में धारावाहिक प्रकाशित होते रहे । इनकी पत्नी संतोष भी लेखिका हैं । एक बार हिमाचल भ्रमण के दौरान हमारी कार संयोगवश इनके होटल यामिनी के सामने खराब हो गयी जिसे निकट के कस्बे नगरोटा बगवां ले जाना पड़ा और हमने सपरिवार यामिनी में शाम बिताई । खैर ।
आज शांता कुमार ने जो घोषणा की है उसके लिए उन्हें सैल्यूट । कोरोना के संकट को देखकर विधायकों ने एक एक माह का वेतन दे दिया । पर हमारे शांता कुमार ने तो जुलाई से मुख्यमंत्री के तौर पर मिलने वाली सारी सुविधाएं त्यागने की घोषणा की है । उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर मिलने वाली सुविधाओं से सार्वजनिक कार्य करने वालों को असुविधा होती है । अब वे सांसद नहीं हैं । सक्रिय राजनीति से भी मुक्त हो चुके हैं । ऐसी स्थिति में एस्काॅर्ट सुविधा की कोई जरूरत नहीं । एक सरकारी गाड़ी और चार कर्मचारी बिना काम के यहां मेरे आस-पास होते हैं । लाखों रुपये का यह खर्च मुझे चुभता है । इसलिए पहली जुलाई से मेरी ये सुविधाएं वापस ले ली जाएं । कौन न आपकी सादगी पे मर जाएगा शांता जी ?
राजनेता तो अपना जनता के बीच प्रभाव बनाने के लिए अपने खर्च पर बंदूकधारी सिक्योरिटी गाॅर्ड्स रखते हैं और जनता से भरसी दूरी बनाये रखने को ही महानता समझते हैं । पत्रकारिता में ऐसे अनेक नेताओं के निजी शो देखे हैं । आपने इस शो और कहें शोशेबाजी से अपने-आपको मुक्त कर लिया । आप धन्य हैं । आपसे अन्य उम्र दराज नेताओं को भी सीख लेनी चाहिए कि वे बेकार में जनता के पैसे को ही अपने ऊपर खर्च होते रहने से बचायें और ऐसी सुविधाएं लौटा दें जो सिर्फ उनके बड़प्पन के शो के लिए हैं न कि जरूरत के लिए । शांता कुमार ने ऐसे पत्र लिखे थे जिन्हें तब धर्मयुग में प्रकाशित किया गया था जो कि राजनीति को भी दिशा दिखाने वाले थे । काश । वे पत्र पुनः प्रकाशित किए जाएं ताकि दलबदल में पारंगत नेताओं को कुछ दिशा मिल सके । सैल्यूट एक बार फिर से शांता कुमार जी । अब हिमाचल यात्रा पर जाऊंगा तो कार खराब होने की इंतजार किए बिना आपके दर्शन जरूर करूंगा । फिर कुछ नयी बातें लिखूंगा ।