लेखक और पुरस्कार
पुरस्कारों की घोषणा हुई ।
लेखक का नाम नहीं था। वह निराश नहीं हुआ । हठ न छोडा । पुरस्कार पाने योग्य एक और पुस्तक की रचना की, जिसमें किसान की उमंगें , मजदूर के पसीने की गंध, मिट्टी की महक और आम आदमी की लड़ाई शामिल थी । पुस्तक लिए लेखक व्यवस्था के द्वार पर जा खड़ा हुआ ।
व्यवस्था बाहर आई , अपने चुंधिया देने वाले मायावी रूप में । पुस्तक को एक पल ताका , लेखक को घूरा , फिर आंखें तरेरते बताया
पुरस्कार चाहते हो तो एक ही शर्त है ।
क्या ?
बस , मेरे असली रूप को देखकर एक शब्द भी नहीं लिखोगे, स्वीकार हो तो अंदर आओ । तुम्हारे बहुत से भाईबंधु मिलेंगे ।
लेखक ने अपनी कलम को चूमा और लौट आया ।
-कमलेश भारतीय