ग़ज़ल / अश्विनी जेतली
भटकते यूँ न हम, वो राह दिखला जाते तो अच्छा था
दिया इक प्यार का दिल में जला जाते, तो अच्छा था
महफ़िल से वो उठ कर यूँ गए, कि फिर नहीं लौटे
ख़ता क्या थी हमारी, ये बता जाते, तो अच्छा था
छुपा था दिल के कोने में, उन्हीं के नाम का जलवा
अगर वो ढूँढने दिल में ही आ जाते, तो अच्छा था
इधर उधर यूँ ही भटके, ना मंज़िल पर कभी पहुंचे
मंज़िल का निशां हम को, बता जाते तो अच्छा था
उन्हें जिद्द थी पिया के घर, ज़रा जल्दी से जाना है
ठहर जाते, हमारा साथ भी पा जाते तो अच्छा था
ग़मों की दास्ताँ कहते हुए, गुम हो गए साजन
मुहब्बत का कोई नग़मा सुना जाते, तो अच्छा था