साहित्य समाज के विघटन को बचाता है
प्रीत साहित्य सदन से मनोजप्रीत द्वारा लिखित लेख
आज हम प्रगति की जिस अपार सीमा के छोर पर अटके हैं उसके पीछे मुख्य कारण हमारा अपनी संस्कृति वेद पुराण व साहित्य से विमुख होना ही हमारे विघटन का कारण बना है। अंधाधुंध प्रगति उपरांत भी हम असहाय अथवा विवश की स्थिति में जूझ रहे हैं क्योंकि हमारा समाज स्वार्थी व अमानवीय होकर महामारी नहीं मानव मारी पर उतर आया है। हमने अपने देश के साहित्य संस्कृति आदर्श अथवा सिद्धांतों की बली दे दी थी। आज पुनः अपनी विरासत व साहित्य से जुड़ने का समय आया है व प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का एहसास हुआ है। अतः हमें पुनरुत्थान के लिए अपने साहित्य से जुड़ना होगा और अपनी नई पीढ़ी को भी प्रेरित करना होगा। इसके लिए आत्म-संतुष्टि ज्ञान व अध्यात्म से अवगत होकर नए समाज के लिए एक सशक्त मानव बनना होगा, जिस के लिए हमारी पुस्तकें सदैव हमारे साथ रही हैं जो हमारा मार्गदर्शन करती रही हैं। आज पुस्तक संस्कृति की अति आवश्यकता है जिस से जुड़ने से ही हमारी प्रगति होगी।