समाचार विश्लेषण/ल्यो कर ल्यो बात , कोरोना को भी जीने का अधिकार ?
-कमलेश भारतीय
धन्य हैं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत जिन्होंने कोयोना को ऐसा प्राणी बताया कि उस बेचारे के पीछे क्यों हाथ धोकर पड़े हो , उसे भी तो जीने का अधिकार है । त्रिवेंद्र के अनुसार कोरोना भी एक प्राणी है और उसे भी जीने का अधिकार है । वैसे भी यह जीना चाहता है और हम इसके पीछे पड़े हुए हैं । उन्होंने कहा कि इसीलिए कोरोना विषाणु अपने नित नये रूप बदल रहा है । पहले कुंभ होने पर तर्क दिया गया था कि यह खुले में हो रहा है । ये नये मुख्यमंत्री का तर्क था । फिर कोरोना खुले में जब खुल कर फैला तब होश आया ।
अब बताइए एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि इस कोरोना महामारी से लड़ने के लिए युद्धस्तर पर काम करना जरूरी है , दूसरी ओर उन्हीं के नेता इस बेचारे कोरोना के पीछे हाथ धोकर पड़े रहने पर बुरा मान रहे हैं । क्या मोदी जी इस ओर ध्यान देंगें ? ऐसे भी तो लोग हैं जो गोबर मल मल कर कोरोना को हराने के अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं और ये लोग भी मीडिया में छाये हुए हैं । सबसे मज़ेदार बात यह आ रही है कि एक वर्ग यह मांग उठा रहा है कि गांवों में झोला छाप डाॅक्टर्ज को काम करने दो । बताइए एक बीमारी से लड़ने के लिए दूसरी बीमारी पालने की सलाह क्यों दी जा रही है? झोला छाप तो झोला छाप ही रहेगा और वह कोरोना में कैसी मदद कर पायेगा ? ऐसे ऐसे सुझाव देने वालों की आकर पर तरस आता है । हे भगवान् , इन्हें सद्बुद्धि दे ।
एक और बात दिल्ली के युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवासन से पुलिस ने पूछताछ की है कि तुम कोरोना में इतनी मदद कैसे और फिर कहां से कर पा रहे हो ? आपको याद दिला दूं कि प्रसिद्ध गायक व भाजपा सांसद हंसराज हंस को ऑक्सीजन इसी श्रीनिवासन ने उपल्ब्ध करवाई थी , जिससे वे चर्चा में आ गये । क्या विपक्षी दल जनसेवा भी नहीं कर सकते ? उनके कार्यालय में भी पुलिस सवाल जवाब करने पहुंची । उनके पास दवा कहां से आई , यह पूछा जायेगा और हाईकोर्ट फैसला करेगा ।
बिहार में बाहुबली पप्पू यादव भी कोरोना पीड़ितों की मदद कर अपना जीवन सुधार रहे थे कि पुराने केस की फाइल निकाल कर जेल भेज दिये गये ताकि उनको लोकप्रियता न मिल सके । सीधी बात यह कि जनसेवा भी सरकार की मर्जी से कर सकते हो । मनमर्जी से नहीं । बहुत सारी बातें हैं । बाकी फिर सही । आज इतना ही ।