महानगर में चांदनी /कमलेश भारतीय

महानगर में चांदनी /कमलेश भारतीय
कमलेश भारतीय।

पेड़ों के पत्तों से छनकर 
धरती पर नहीं मुस्कुराती 
दूधिया ट्यूबलाइटस के पीछे 
छिप कर खूब रोती है ।
.......
महानगर में कोयल ने
आम के झुरमुट में 
बहुत मीठी आवाज में गाया
शोर होड़ और दौड़ के बीच 
उसकी मीठी आवाज 
किसी ने न सुनी 
इसलिए वह बेचारी बहुत सिसकी 
बहुत सिसकी ।
.......
महानगर की भीड़ में
दिल में बस 
एक ही चाहत रही 
मुझको कोई 
मेरे गांव के नाम से 
पुकार ले ,,,
,,,,,,
महानगर में आके 
मैंने ऐसे महसूस किया 
जैसे किसी ने मछली को 
पानी से अलग किया .......

-कमलेश भारतीय