समाचार विश्लेषण/ममता की कलाकारी और राहुल को याद आया बंगाल
-कमलेश भारतीय
पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निर्वाचन आयोग ने एक दिन प्रचार न करने का आदेश जारी किया तो उन्हें कलाकारी की याद सताई और वे रंग , ब्रुश और केनवास लेकर महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास पहुँच गयीं धरना देने अकेलीं । अब हरियाणवी स्टाइल की बात कि अब शनि यानी क्या बिगाड़ लेगा ? ऐसे ही धरने पर बैठने से निर्वाचन आयोग क्या कर लेगा ? जो करना ता वह तो कर चुका । सो एक दिन भी पार हो गया बिना प्रचार किये और प्रचार भी कर दिया बिना ज्यादा फंड किये। इसे कहते हैं प्रचार और आम के आम गुठलियों के दाम । प्रचार भी हो गया और पेंटिंग भी बना ली । जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव के मतदान के दौरान चुनाव चिन्ह कमल हाथ में लेकर पत्रकारों से बातचीत की थी । साहब, कोई आपके तरीके आप पर ही आजमा ले तो कैसा लगे ? ममता बनर्जी ने वही किया । बिना प्रचार किये मीडिया के सामने रही । हो गया धोया, भिगोया , निचोड़ा और सब साफ , रंग चोखा ।
बेशक पश्चिमी बंगाल में अभी आधा चुनाव बाकी है और आधा हो चुका है लेकिन हमारे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उधर अभी तक रूख ही नहीं किया । सारा चुनाव कार्यकर्त्ताओं और राज्य पदाधिकारियों पर डाले रखा । सभी दल हैरान कि राहुल असम में तो वर्क आउट करने चले जाते हैं लड़कियों के काॅलेज में , क्या पश्चिमी बंगाल में कोई काॅलेज नहीं मिला ? यह बात हम नहीं एक पूर्व सांसद ने कही थी । बात खुली कि असल में ममता बनर्जी को अनेक दल भाजपा से लड़ने के लिए समर्थन दे चुके हैं । समाजवादी पार्टी की ओर से गुड्डी यानी जया बच्चन प्रचार कर गयीं ममता बनर्जी के पक्ष में जबकि बिग बी साहब के ब्रांड एम्बेसेडर बने हुए हैं । मिथुन चक्रवर्ती दीदी को छोड़ गये तो क्या? गुड्डी है न । प्रचार करने आईं प्रवासी बंगालिन।
राहुल इसी संकोचवश नहीं आ रहे थे पश्चिमी बंगाल। सीधे समर्थन भी नहीं कर सकते और विरोध ज्यादा न हो जिससे कि वोट प्रतिशत बिगड़ जाये । बस । इसीलिए अभी तक बंगाल नहीं आए पर अब आयेंगे । खबर पक्की है । मज़ेदार तर्क दिया जा रहा है कि अब हमारे समर्थन वाले क्षेत्र आ गये हैं । अरे भोले बादशाहो, अब तक तो खेला हो गया । किसका है तुमको इंतज़ार ? नहीं । इतनी भोली नहीं बंगाल की जनता । यहां तो सीधे-सीधे टी ट्वेंटी चल रहा है । इतना मज़ा आईपीएल में कहां जो पश्चिमी बंगाल में है । चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या गृहमंत्री अमित शाह या फिर अध्यक्ष महोदय नड्ढा सबके सब हाय दीदी , हाय दीदी चिल्लाते सुनाई देते हैं । सभागार या स्टेडियम में बस एक ही आवाज़-दीदी , दीदी , दीदी ,,,,क्यों भई इतनी भी प्यारी लगती है तो राखी का त्योहार मनाने जाया करो । बेमौसमी दीदी बनाने से क्या होगा ? कभी दीदी कहते हो, कभी बुआ । एक नाम या संबोधन तो तय कर लीजिए । ऐसे राजनीति में मज़ाक या उपहास उड़ाने का सिलसिला क्यों ? इसी उपहास की चरमसीमा यूपी में हुई थी जब बात गधे घोड़ों तक जा पहुंची थी । बात शमशान और कब्रिस्तान पर जा पहुंची थी । प्रधानमंत्री के भाषण और आम नेता के भाषण में मर्यादा का स्तर तो अलग होना चाहिए ।
दीदी ने पेंटिंग बनाई । काश मन में ऐसी ही सुंदर पेंटिंग की कल्पना पश्चिमी बंगाल की सोची होती । मां , माटी और मानुस को दिल से पूरा किया होता तो आज घायल होकर व्हील चेयर पर न चलना पड़ता।