मनोज धीमान द्वारा माँ दिवस पर लिखी गई एक काव्य रचना- "माँ"
माँ
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अक्सर सपनों में आती हो तुम
जानता हूँ सचाई को
बरसों पहले
हवाओं में जा मिली थी तुम
हमेशा हमेशा के लिए
कहीं दूर
कहीं बहुत दूर चली गई थी तुम
कभी वादा किया था तुमने
लौट कर आओगी
एक नज़र देखने को मुझे
घर के बनेरे पर चिड़िया के रूप में
या फिर चांदनी के रूप में
आज सुबह सवेरे
खुली जब आँख
सुनी चह चहाहट की आवाज़
एक सुंदर सी चिड़िया
बैठी थी
घर के बनेरे पर
क्या तुम ही थी
माँ
-मनोज धीमान।