समाचार विश्लेषण/है काम आदमी का औरों के काम आना
ऋषभ पंत की मदद करने वाले सम्मानित
-*कमलेश भारतीय
आजकल जैसा हमारा लाइफ स्टाइल है , हम घोर स्वार्थो हो चुके हैं और पड़ोसी भी पड़ोसी की खबर नहीं रखते । इस स्वार्थमयी संसार को बहुत पहले प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा ने भांप लिया था और फूल को सुनाने के बहाने जमाने को सुनाते कहा था :
मत व्यथित हो पुष्प !
इस स्वार्थमय संसार में !
फूल जब अपनी सारी खुशबू लुटाकर , सौंदर्य लुटाकर मिट्टी में मिल जाता है , तब महादेवी वर्मा यह बात कहती हैं कि पुष्प व्यथित मत हो , यह सारा संसार ही स्वार्थमयी है । देखिये ! महानगरों में कोई पड़ोसी किसी दूसरे पड़ोसी को नहीं जानता । हालत यह हो गयी है कि फ्लैट्स में कब किसका दम निकल गया और किसी को पता भी नहीं चलता । ऐसे में जब फ्लैट्स के आसपास दुर्गंध फैलने लगती है तब जाकर यह रहस्य उजागर होता है कि क्या घट चुका है !
राह चलते कोई दुर्घटनाग्रस्त होकर सड़क पर छटपटा रहा हो तो भी कोई नहीं रुकता । सोचते हैं कि मदद कर कहीं कोई केस ही न लगा दिया जाये !
इन हालातों में भी हरियाणा रोडवेज के एक चालक सुशील कुमार और परिचालक परमजीत ने रूड़की के पास एक कार पलटी देखी जिसमें आग लग चुकी थी । यहीं पास से ये रोडवेज बस से ले जा रहे थे । यह हादसा देखकर बस रोकी और गाड़ी से युवक को बाहर निकाला जिसने बताया कि वह क्रिकेटर ऋषभ पंत है । ऋषभ तीस दिसम्बर को देहरादून में अपनी मां सरोज को नये साल का सरप्राइज देने के लिए घर बिना बताये गाड़ी ड्राइव कर जा रहे थे । तुरंत इन चालक परिचालक ने फोन घुमाये जिससे ऋषभ को समय पर मेडिकल सुविधा मिल गयी और उसे एक प्रकार से जीवनदान गया । इन्हें गणतंत्र दिवस पर यमुनानगर में आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सम्मानित करने के साथ साथ पुरस्कृत भी किया । पानीपत प्रशासन ने भी इनके परिजनों को गणतंत्र दिवस समारोह में आमंत्रित कर इन्हें एक एक लाख रुपये की राशि देकर पुरस्कृत किया । यह सरकार व प्रशासन की बहुत अच्छी पहल है । ऋषभ पंत की मां सरोज ने भी इनके नाम संदेश भेजकर सुशील व परमजीत के सम्मान पर सरकार का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि सबसे पहले इन दोनों ने ही ऋषभ को कार से निकाला था और वे पूरी तरह ठीक होकर इन दोनों से जरूर मिलेंगे ! इसीलिए कहते हैं :
है काम आदमी का औरों के काम आना !
सच में सुशील और परमजीत ने तो दुर्घटनाग्रस्त कार मे फंसे एक युवक को बचाया था । वे यह भी नहीं जानते थे कि युवक कौन है या इसे बचाने पर इन्हें कोई सम्मान मिलेगा ! उन्होंने तो अपने दिल की सुनी और बस रोककर मदद के लिए पहुंच गये । यह तो बाद की बात कि वह युवक ऋषभ पंत था और उसका जीवन बचाने पर उनका सम्मान किया गया ! इस उदाहरण से इस स्वार्थमय संसार को कोई सबक लेना चाहिए कि हम एक दूसरे की मुसीबत में काम आयें और प्रशासन व सरकार के कदम की भी सराहना की जानी चाहिए जिससे कि औरों को भी अच्छा काम करने की प्रेरणा मिल सकेगी !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।