शहादत का दिन और हम
-कमलेश भारतीय
आज शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहीद दिवस है । सन् 1931 को इन तीनों को अंग्रेज सरकार ने देर शाम फांसी दी थी और लोग भड़क न जाएं इस डर से सतलुज के किनारे हुसैनीवाला में मिट्टी का तेल छिड़क कर अमानवीय ढंग से अंतिम संस्कार कर दिया था । दूसरे दिन भगत सिंह की बहन बीबी अमरकौर अपनी मां विद्यावती के साथ गयी थी और उस दिन के ट्रिब्यून अखबार में शहीदों की अस्थियां समेट कर लाई थी जो आज भी उसी अखबार में लिपटीं या कहिए कि सहेजी रखी हैं खटकड़ कलां के शहीदी स्मारक में । सुखदेव की टोपी वाला कुल्ला रखा है और भगत सिंह की डायरी और पैन जैसे कि अभी भगत सिंह आयेंगे और नये जमाने पर अपनी बात लिखने लगेंगे । लाहौर के नेशनल कालेज गये तो थे पढ़ने लेकिन क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए और फिर फांसी के फंदे तक झूल गये । नाटक और लेखन में भी रूचि थी । कानपुर अखबार में बलवंत नाम से पत्रकारिता भी की । अपने छोटे भाई को भी खत लिख कर पढ़ने की सलाह देते रहते थे । सुखदेव एक संगठनकर्त्ता थे । पैसा इकट्ठा करना और संगठन को चलाना उनका काम था । वे भी पंजाब के लुधिथाना के नौघरां मोहल्ले के थापर परिवार से थे । उनके छोटे भाई मथरादास थापर मुझसे मिलने हापुड़ से खटकड़ कलां आए थे और उन पर लिखी पुस्तक अनेकों में से एक : अमर शहीद सुखदेव उपहार में दे कर गये थे । इसी प्रकार शहीद भगत सिंह के भांजे प्रो जगमोहन सिंह ने पुस्तक उपहार में दी : भगत सिंह के पुरखे । यह उन्होंने बड़ी खोज और शोध के बाद लिखी जिसका संपादन सहयोग प्रो चमन लाल ने किया । ये सारी पुस्तकें मुझसे मेरे जालंधर दूरदर्शन में कार्यरत मित्र कृष्ण कुमार रत्तू एक कार्यक्रम बनाने के लिए ले गये और फिर जैसे कि होता है लौटाना भूल गये । शहीद भगत सिंह के परिवार से पूरे ग्यारह वर्ष मुलाकातों का सुनहरी अवसर मिलता रहा खटकड़ कलां के आदर्श सीनियर सेकेंडरी स्कूल में प्राध्यापक व कार्यकारी प्रिंसिपल रहने के चलते । वे मेरे जीवन के सुनहरी साल कहे जा सकते हैं । हर बार पंजाब सरकार इन परिवारजनों को बुलाकर सम्मानित करती । मां विद्यावती को तो जब ज्ञानी जैल सिंह मुख्यमंत्री थे एक एम्बेसेडर कार और पंजाब माता की उपाधि भी दी गयी थी । इस पर संत राम उदासी नाम के पंजाबी के चर्चित कवि ने लिखा था गीत
हाड़े भगत सिंह दी मां
बेशक बनेयो
पर हाड़े बनेयो न कोई
पंजाब माता ।
यानी उदासी के विचार में जो भारतमाता के स्टेट्स के बराबर थीं वह पंजाब माता बन कर क्यों सिमट जाए ? यह गीत आज भी उनकी बेटी इकबाल कौर गाती हैं मंचों पर । फिर इसी शहीद स्मारक में भगत सिंह को प्रिय लगने वाली पंक्तियां भी लिखी गयी हैं जिन्हें वे अक्सर गुनगुनाते रहते थे :
सेवा देश दी करनी जिंदड़िए बड़ी ओक्खी
गल्लां करनियां ढेर सुख्लियां ने
जिहना देश सेवा विच पैर पाया
उहनां लक्ख मुसीबतां झल्लियां ने
इसी प्रकार उन्हें यह भी प्रिय थीं :
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर
हमको भी मां-बाप ने पाला था
दुख सह सह कर ,,,
कौन मां बाप चाहता है कि उसका बेटा फांसी पर झूल जाए ? पर भारत मां के लिए हम झूल गये । कोई अफसोस नहीं । फिर आयेंगे और फिर इसी देश के लिए क़ुर्बान हो जायेंगे ।
शहीदों की चिताओं पर
लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मिटने वालों का
यही बाकी निशां होगा ,,,
आज भी भगत सिंह और उनका इंकलाब जिंदाबाद अमर है ।
नमन् और स्मरण । इन शहीदों को ।