समाचार विश्लेषण/मेडल की कीमत तुम क्या जानो बाबू
-*कमलेश भारतीय
एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो ,,,यह डायलॉग बहुत चला था दीपिका पादुकोण की फिल्म -ओम शांति ओम में ! अब यही डायलॉग जंतर-मंतर पर बैठे महिला पहलवानों के हक में मुक्केबाज बिजेंद्र ने कहा है । असल में कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने कहा था कि मेडल तो पंद्रह रुपये में बिकेगा ! यह बात उन्होंने एक इंटरव्यू में कही थी । पहलवानों ने पलटवार करते कहा कि मेडल पंद्रह साल की कड़ी मेहनत के बाद मिलता है । तुम क्या जानो इसकी कीमत बाबू ! मुक्केबाज बिजेंद्र ने कहा कि फिर प्रधानमंत्री जी पंद्रह रुपये के मेडल जीतने वालों के साथ फोटो क्यों खिंचवाते हैं ? असल में इंटरव्यू में बृजभूषण शरण सिंह कह रहे हैं कि पहलवानों को मेडल नहीं ,पैसा वापिस करना चाहिये । मेडल तो पंद्रह रुपये में बिकेगा ! इस पर ओलंपियन पहलवान बजरंग पूनिया ने जवाब दिया कि मेडल हमारी पंद्रह साल की मेहनत से मिला है । तुम जैसों ने खैरात में नहीं दिया बाबू ! खून पसीना बहाकर देश के लिये जीत कर लाये हैं ! खिलाड़ियों को इंसान समझा होता तो ऐसी टुच्ची बात न कहते ! इसी के साथ साक्षी मलिक और विनेश चौहान ने भी कहा कि इस बात से साबित हो गया कि न तो वह इंसानों की , पहलवानों की कद्र करता है और न ही मेडल की !
जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न प्रकरण के विरोध में चल रहे धरने को तीन सप्ताह से ऊपर समय हो गया । बृजभूषण शरण के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज हुई और उन्हें कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद से हटाया गया , यह इस धरने की जीत कही जा सकती है लेकिन यौन उत्पीड़न की सजा अब तक क्यों नहीं ? महिला पहलवानों को अखाड़े तक लाने में भिवानी के निकट गांव बलाली के महावीर फौगाट की भूमिका जगजाहिर है । इसी गांव से आमिर खान को दंगल का आइडिया आया और यह फिल्म पैसों की खान साबित हुई लेकिन यही आमिर खान जंतर-मंतर पर धरने में साथ देने एक बार भी नहीं आये । फिल्म वालों को कमाई से मतलब ! जैसे कश्मीर फाइल्ज वाली पल्लवी जोशी भी किसी विस्थापित कश्मीरी की मदद करते देखी नहीं गयी ! इनको तो कमाई चाहिये सौ करोड़ के क्लब वाली ! ये क्या जाने किसी का दर्द बाबू !
इन दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हंसते मुस्कुराते पदक विजेताओं का वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है लेकिन यह किसी को नहीं दिख रहा तो वे खुद भाजपा नेता हैं ! उन्हें दिखाई नहीं दे रहा । आखिर सचमुच क्या पंद्रह रुपये की कीमत लाले पहलवानों के साथ फोटो खिंचाई थी या देश को गौरव प्रदान करने वाले पहलवानों के साथ ? यह फैसला तो आप कीजिये न ! पंद्रह पंद्रह साल की मेहनत के बाद देश के गौरव के लिये पदक जीतकर लाने वाले क्या फोटो में ही अच्छे लगते हैं ? इनके दुख को कौन सुनेगा ? कहीं से तो इनके पक्ष में आवाज उठाई जानी चाहिए !
मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग आग छलनी चाहिए ( दुष्यंत कुमार )
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।