मीडिया: तो बात यहां तक पहुंची?
-*कमलेश भारतीय
मीडिया के बहुत बड़े समंदर का मैं भी एक छोटा सा हिस्सा हूं या कहिए एक बूंद मात्र हूं । पहले बेशक प्राध्यापक रहा लेकिन धीरे धीरे पत्रकारिता ने ऐसा मोह लिया कि प्रिसिपल की कुर्सी और घर का आराम , खेत खलिहान छोड़कर चंडीगढ़ आ गया । उत्तर भारत के बहुत बड़े प्रकाशन संस्थान में । अपना जीवन ही दे दिया पत्रकारिता को । मेरे जैसे अनेक होंगे जिनके लिए पत्रकारिता कोई जाॅब नहीं बल्कि जुनून होगा । खैर ।
जब पत्रकारिता में कदम रखा था तब पत्रकारिता की एक ऊंचाई थी । कुलदीप नैयर जैसे लोगो को आपातकाल में भी बख्शा नहीं गया । कितने राजनेता भी पत्रकारिता के क्षेत्र में रहे । लाला लाजपताराय और महात्मा गांधी तक ने अखबार निकाले । माखन लाल चतुर्वेदी तक एक मिसाल रहे और यह भी कहा जाता था कि यदि पत्रकारिता करनी है तो बिना वेतन के जेल जाने को तैयार रहना होगा । मुंशी प्रेमचंद तक जुर्माने भुगतते रहे । स्वतंत्रता पूर्व पत्रकारिता एक मिशन थी और स्वतंत्रता के बाद यह कमीशन पर टिक गयी । कितना शर्मनाक रास्ता तय किया । प्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी कहते थे कि पत्रकारिता से हम चाहे सजा न भी दिला सकें लेकिन एक सामाजिक शर्म तो पैदा कर ही सकते हैं । जिसके बारे में लिखते हैं जब बड़ी महफिल में जाता है तब लोग उसकी ओर देखकर इशारे करते हैं और वह शर्म के मारे महफिल छोड़कर चला जाता है ।
अभी पिछले कुछ सालों से पत्रकारिता और चाटुकारिता में काफी अंतर मिटता दिख रहा है और जो बात यानी पत्रकार कहलाने में गर्व महसूस होता था, वह अब शर्म का कारण बनता जा रहा है । इलैक्ट्रानिक मीडिया तो जैसे कहा जा रहा है गोदी मीडिया बन चुका है । इसको जन-सरोकार से कोई मतलब नहीं रह गया । इसे तो अपने चैनल के आका को और उस आका को अपने राजनीतिक आका को खुश रखना है । बस । यही सफलता का मंत्र है और यही सच है । जनता के मुद्दे गये पानी में जैसे भैंस गयी पानी में । इतना भी कर लो लेकिन विरोधी नेताओं की छवि धूमिल करने में जुट जाओ ? यह कैसे होगा और कौन सहेगा ? राहुल गांधी के बारे में टीवी एकर राजीव रंजन ने जो किया वह बहुत महंगा पड़ा और इससे मीडिया की छवि भी धूमिल हुई । क्या विरोधी नेताओं की छवि खराब करके ज्यादा खुशी मिलती है ? कानून का डर नहीं ? आखिर केस हुआ और गिरफ्तारी भी । यह बहुत गंभीर मसला है ।
दूसरी ओर पिछले कुछ दिनों से जींद के एक पत्रकार और जींद के विधायक डाॅ कृष्ण मिड्ढा का मामला भी काफी सुर्खियों में है । मोटी जानकारी के मुताबिक पत्रकार के खिलाफ विधायक महोदय ने न केवल मानहानि बल्कि दो करोड़ रुपये का केस ही नहीं डाल दिया यहां तक कि जिस प्रतिष्ठान में वह नौकरी कर रहा था ,वहां से भी निकलवा दिये जाने का आरोप है । यह तो हद हो गयी । पत्रकार को सबक सिखाते सिखाते खुद विधायक महोदय आलोचना के शिकार हो गये । पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी इस मामले पर कहा कि सत्ता के अहंकार में विधायक ने यह कदम उठाया , जो निंदनीय है । कितने ही संगठन इस मामले में कूद चुके हैं और विधायक को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है । यदि वे थोड़े से भी व्यवहार कुशल हों तो पत्रकार को सम्मानपूर्वक घर बुला कर सहमति बना कर मामले वापिस ले लें । इसे उनका बड़प्पन ही माना जायेगा । कोई शर्म की बात नहीं होगी । पत्रकारिता और राजनीति का तो चोली दामन का साथ है , फिर आपस में ऐसा अड़ियल व्यवहार क्यों ? पत्रकारों को भी अपनी मर्यादा , अपनी सीमायें पहचाननी चाहिएं । हम लक्ष्मण रेखायें व लांघें तो अच्छा है और पत्रकारिता को एक सम्मानजनक कर्म बनाये रखें । बाकी तो महात्मा गांधी के शब्दों में :
सबको सन्मति दे भगवान् ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।