समाचार विश्लेषण/मीडिया: किसकी लगाम , किसके हाथ?
-कमलेश भारतीय
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हरियाणा में संपन्न हो गयी । यह मेवात यानी दक्षिण हरियाणा में रखी गयी थी । सर्दी में ठिठुरते दिनों में राहुल गांधी इतनी गर्मी दे गये कि हरियाणा के कृषि मंत्री जे पी दलाल ने बड़ी हैरानी से पूछा कि आखिर इतनी ऊर्जा कहां से आई कि एक टी शर्ट में ही राहुल गांधी पदयात्रा कर रहे हैं ! वैसे राहुल गांधी की महंगी टी शर्ट यात्रा के बहुत शुरू से ही विवाद में आती रही है । जे पी दलाल ने यह भी कहा कि राहुल ऐसे दस साल तक चलते रहें और भारत को समझें । पर एक बात है कि इस चलने चलने में हिमाचल में सरकार आ गयी ! आगे क्या होगा ?
अब बात फिर से राहुल गांधी की यात्रा की । जब दिल्ली की ओर निकलने लगे राहुल तब जनसभा को संबोधित करते करते पहले बोले मीडिया के मित्रो , फिर बोले वैसे आप मित्रता का व्यवहार करते नहीं हो हमसे ! आप चौबीस घंटे के चैनल और दो चार मिनट भी हमारी यात्रा नहीं दिखा रहे ! फिर बोले कि क्या कहूँ , आपको भी बच्चे पालने हैं और रोटी कमानी है और मैं जानता हूं कि आपकी लगाम किसके साथ में है ! पर मित्रो आप यह भी जिन लो कि जिसके हाथ में आपकी लगाम है वह भी किसी और की लगाम से बंधा हुआ है ! यानी यह देश दो चार , पांच अमीरों के हाथ में है । आप चाहें भी तो दो चार मिनट हमारी यात्रा को नहीं दिखा सकेंगे !
राहुल गांधी ने इस तरह मीडिया को आइना दिखा दिया और एनडीटीवी के खरीदने पर भी अप्रत्यक्ष निशाना साध दिया ! मीडिया की ऐसी हालत क्यों हुई ? इतना बेबस मीडिया कैसे हो गया ? यह भेद अब आम आदमी भी जान चुका है और खास भी ! रवीश कुमार ने इसीलिए तो लिखा कि आप एनडीटीवी खरीद सकते हो , रवीश कुमार को नहीं ! क्या खरीदे हुए मीडिया की कवरेज न करने से राहुल गांधी को कोई फर्क पड़ा? नहीं । बिल्कुल नहीं । सोशल मीडिया ही था जिसने किसान आंदोलन में जान फूंके रखी थी और यह सोशल मीडिया ही है जो राहुल गांधी की यात्रा की पल पल की खबर दे रहा है । किसान आंदोलन में तो राष्ट्रीय कहे जाने वाले चैनल को भगा दिया था कि हमें आपकी कवरेज की जरूरत नहीं । अभी पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी 'आज तक' की रिपोर्टर अंजना ओम कश्यप को कहा है कि जो कुछ आप विपक्ष का दिखा देती हैं या कह देती हैं , कभी आपमें इतनी हिम्मत है कि भाजपा शासित प्रदेशों का भी दिखा सको ? नहीं है न हिम्मत ! यह बहुत बड़ा सवाल है कि इस तरह ये चैनल अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं दिन प्रतिदिन ! लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं और ये चैनल अब गिरावट में एक दूसरे से नम्बर वन बनने की होड़ में लगे हैं । इनको अपनी सोच , नीति और कार्यनीति पर विचार, करने की जरूरत है । नहीं तो भेद तो खुल चुका है कि किसकी लगाम , किसके हाथ है !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।