हिसार की यादें-4
दिल ढूंढता है फिर वही......
राखीगढ़ी बनी राष्ट्रीय धरोहर
-कमलेश भारतीय
लिखने बैठूं तो हिसार की यादों का पिटारा खुलता ही जायेगा। कोई ओर-छोर नहीं इन यादों का, न कोई आदि न कोई अंत! अनंत हैं यादें! जब सन् 1997 में आया था हिसार ए फिरोजां में तब मैं भी गूजरी महल और किला देखने गया था। यह बिल्कुल हिसार के बस स्टैंड के सामने है जबकि महल सिविल अस्पताल के पीछे है ।फिरोज शाह और गूजरी की प्रेम कहानी ने मुग्ध कर दिया था। फिरोज शाह यहां शिकार खेलने आता था और उसकी नज़र एक गूजरी पर पड़ी जिससे पहली नज़र में ही प्यार हो गया लेकिन गूजरी अपने माता पिता को छोड़कर जाने को तैयार नहीं हुई और फिरोज शाह ने यहीं गूजरी महल बनवा दिया और अपनी सुरक्षा के लिए किला बनवाया। किले में लाट की मस्जिद और खूबसूरत बरामदा मोह लेते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से काफी ध्यान दिया गया था । अंदर जाते ही बाईं ओर कुछ कोठरियां भी हैं जो शायद सुरक्षा सैनिकों के आवास रहे होंगे । पहले किला व गूजरी महल एक दूसरे से जुड़े हुए थे लेकिन अब बीच में क्लाॅथ मार्केट और सिविल अस्पताल के बीच सड़क बन चुकी है । इस किले के चार गेट थे और धीरे धीरे हिसार इन गेटों से निकल कर फलता और फूलता ही गया। अब यह नगर पालिका से नगर निगम बन चुका है।
कभी कभार यहां कुछ समारोह भी हुए । कुछ इसका पुनर्निर्माण भी हुआ लेकिन सुनता हूँ कि काफी हिस्से पर अनेक दुकानों के चलते यह काफी सिमट गया लगता है । फिर भी स्कूल व काॅलेज के छात्रों के कदम यहाँ पड़ते रहते हैं। हिसार पुरातत्त्व की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। जहाजपुल का नाम भी जाॅर्ज थामस की कोठी के सामने से गुजरती नहर के चलते पड़ा। जाॅर्ज की बजाय जहाज ही कहने से यह जहाजपुल कहा जाने लगा। इसी नहर पर तेलियान पुल भी बना हुआ था । इस क्षेत्र पर जाॅर्ज थामस का शासन था। अब जाॅर्ज की कोठी में डिवीजनल म्यूजियम है जिसमें पुरातत्त्व की दृष्टि से खुदाई में से निकलीं पुरानी चीज़ें इसमें रखी गयी हैं। अब नहर तो नहीं और न कोई पुल लेकिन ये प्रचलित नाम चल रहे हैं। मैं कोई इतिहासकार नहीं हूं, सिर्फ शौक के चलते इसे समझने की कोशिश भर कर रहा हूं। डीएन काॅलेज के इतिहास विभाग के प्रोफेसर व इतिहासकार महेंद्र विवेक का सुझाव है कि किले में लाइट एंड साउंड कार्यक्रम होना चाहिए जिससे इसका आकर्षण बढ़ेगा। वे इतिहास से जुड़ी ंअनेक प्रदर्शनियां लगाते रहते हैं।
फिर मुझे राखीगढ़ी के बारे में भी काफी कुछ सुनने को मिला तो एक शाम मैं वहाँ भी गया। पुरातत्त्व विभाग के एक दल की देखरेख में खुदाई चल रही थी। शाम का अंधेरा उतरने लगा था तब दल के मुखिया अमरनाथ ने लालटेन के सहारे खुदाई के बाद निकलीं चीज़ें दिखाई थीं। कुछ कुछ गाइड फिल्म याद आने लगी थी। हमारी पुरानी हड़प्पाकालीन सभ्यता के अवशेष साफ दिख रहे थे। तब कुछ फोटोज भी उपलब्ध करवाये थे। प्रमुखता से मेरा आलेख प्रकाशित हुआ था। अब एक साल पहले भी दिल्ली से पुरातत्त्व विभाग का दल आया था सुना था कि अमरनाथ भी आये थे लेकिन मेरा जाने का कुछ अवसर बना नहीं लेकिन ये राष्ट्रीय धरोहर मानी जाने लगी है। जिलाधीश प्रियंका सोनी ने भी हिसार को पुरातत्त्व की दृष्टि से इसकी बहुत सराहना की। वे फिरोज शाह किले के बरामदे में पेंटिंग प्रदर्शनी लगवाना चाहती थीं लेकिन उनका ज्यादा कार्यकाल कोरोना से जूझने में ही निकल गया। वे अपने सपने को साकार न कर सकीं। गूजरी महल और फिरोज शाह का किला हिसार की शान हैं तो राखीगढ़ी राष्ट्रीय धरोहर बन चुका है । ये यादें मैं भूल नहीं सकता!
दिल ढूंढता है फिर वही
फुर्सत के रात दिन!