महान उर्दू कवि और लेखक मिर्जा असदुल्लाह ख़ाँ ग़ालिब का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया पंजाब विश्वविद्यालय में

महान उर्दू कवि और लेखक मिर्जा असदुल्लाह ख़ाँ ग़ालिब का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया पंजाब विश्वविद्यालय में

चंडीगढ़, 28 दिसंबर, 2021: महान उर्दू कवि और लेखक मिर्जा असदुल्लाह ख़ाँ ग़ालिब का जन्मदिन पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के उर्दू विभाग में बड़ी धूमधाम से मनाया गया।

प्रोग्राम में काफ़ी संख्या में छात्रों के अलावा, विभिन्न शैक्षणिक और साहित्यिक हस्तियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।

 इस अवसर पर डॉ. अली अब्बास, अध्यक्ष, उर्दू विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ ने  मिर्ज़ा ग़ालिब के हालात और उनके व्यक्तित्व पर गुफ़्तगू करते हुए कहा कि ग़ालिब एक धर्मनिरपेक्ष कवि थे, उनकी कविताओं को हर वर्ग के लोग पढ़ते थे। ग़ालिब की लोकप्रियता के रहस्यों में से एक यह भी है कि वे भरपूर ज़िंदगी के शायर  हैं और उनकी मुख्य विशेषता यह भी है कि वे अपनी कविता के माध्यम से एक ऐसा सवाल छोड़ जाते हैं जो पाठकों, श्रोताओं को  चुभता रहे , और उनको सोचने पर मजबूर करता रहे।

उर्दू विभागाध्यक्ष ने ग़ालिब के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का परिचय कराते हुए कहा कि ग़ालिब ने कलकत्ता, रामपुर, लखनऊ, बनारस आदि का बड़ी तंग दस्ती के आलम में  सफ़र किया।

उन्होंने बनारस में गंगा के किनारे बैठकर कविताएं लिखी। ग़ालिब को ज़िंदगी में जो हालात पेश आए, उन्होंने उसी तरह उन हालात का वर्णन किया, जो उनके  अंदर टूट रहा था, ग़ालिब की शायरी उसी टूटे हुए दिल की आवाज़ है, इसलिए ग़ालिब लंबे समय तक जीवित रहेंगे।

डॉक्टर अब्बास अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि  मिर्ज़ा ग़ालिब  को किताबों का बहुत शौक़ था, किताबें किसी से उधार लेते और पढ़कर लौटा देते थे, किताबें उधार लेने का यह तरीक़ा पढ़ने में रुचि बनाए रखता है, कभी-कभी ऐसा होता है कि ख़रीदी गई किताबें सालों तक अलमारी में सजाकर रख दी जाती हैं मगर, उन्हें पढ़ने तक का वक़्त भी नहीं मिल पाता , जबकि उधार ली गई पुस्तकें वक़्त पर पढ़ी जाती हैं, समय पर ही किसी को वापस देने के उद्देश्य से लौटा दी जाती हैं, जिससे पढ़ने का शौक़ बरक़रार रहता है।

उर्दू विभागाध्यक्ष, डॉ. अब्बास ने आगे कहा कि मिर्ज़ा साहब की शायरी में अर्थों का ख़ज़ाना छिपा है। , इनोवेशन उनकी शायरी की मुख्य विशेषता है। उन्होंने अपनी सादगी और वाक्पटुता के माध्यम से पत्र लेखन की कला को भी लोकप्रिय बनाया। उन्होंने आगे कहा कि ग़ालिब अपने समय से हज़ारों साल आगे थे, उनका कलाम बरसों, हज़ारों सालों ज़िंदा रहेगा। ग़ालिब अपनी शायरी के ज़रिए शोक़ को परवान चढ़ते हुए देखना चाहते हैं वह कहते हैं बिना शौक़ ज़िंदगी की रफ़्तार थम जाएगी, ज़िंदगी को जारी रखने में शौक़ ही अहम भूमिका निभाता है।, शौक़ ही के ज़रिए नए रास्ते निकलते हैं और इंसान मंज़िल की जुस्तुजू में सरगर्म रहता है

इस अवसर पर शोधार्थियों में मुहम्मद शरीफ ने "मिर्ज़ा ग़ालिब के हालात" और मुहम्मद सुल्तान ने "मिर्ज़ा ग़ालिब के किस्से" पर अपने लेख प्रस्तुत किए।

रवि तेज बरार, जेपी सिंह और मनदीप सिंह ने ग़ालिब की ग़ज़लों के माध्यम से उनके व्यक्तित्व पर संक्षिप्त चर्चा की।

 इस अवसर पर छात्रों ने मिर्ज़ा ग़ालिब की विभिन्न ग़ज़लों के माध्यम से श्रोताओं का मन मोह लिया और कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई जिनमें मुहम्मद बशीर, रमिया आदि प्रमुख हैं.

 राशिद अमीन नदवी ने कार्यक्रम संचालन के कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया।

  उर्दू विभाग की प्रोफेसर ज़रीन फ़ातिमा ने स्टूडेंट्स के समक्ष ग़ालिब की ग़ज़ल पेश कर उनके संदेश से अवगत कराया।।

  कार्यक्रम में भाग लेने वाले छात्रों का उत्साहवर्धन करते हुए कार्यक्रम की अध्यक्षा पंजाब यूनिवर्सिटी की पूर्व सीनियर प्रोफेसर डॉक्टर रेहाना परवीन ने श्रोताओं को ग़ालिब के विभिन्न पत्रों और उनमें मौजूद हास्य के रंगों  से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि ग़ालिब ने बड़ी मुश्किलों और दुखों का सामना किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। हिम्मत से काम लिया, वो इतने महान कवि थे वह किसी को अपने से बड़ा कवि नहीं मानते थे।

  अंत में प्रो. ज़ुल्फ़िकार अली ने ग़ालिब और उनके फ़ारसी कलाम का परिचय देते हुए कहा कि मिर्ज़ा ग़ालिब की लोकप्रियता उनके शुरुआती दिनों में फ़ारसी शायरी  की वजह से थी, वह अपने फ़ारसी कलाम के सामने उर्दू शायरी को रंगहीन कलाम कहते थे। वो उस वक़्त फ़ारसी के बड़े शायर मिर्ज़ा बेदिल की शैली का अनुसरण करते थे लेकिन धीरे-धीरे उनके भाषण में उर्दू का रंग ग़ालिब आ गया और उनकी भाषा समझने में आसान हो गई। इसलिए वो उर्दू में ज़्यादा मक़बूल हुए।

 डॉक्टर साहब ने अपने वक्तव्य के अंत मे सभी स्टूडेंट्स और अतिथियों का धन्यवाद करते हुए अपनी गुफ्तगू को विराम दिया।