मिसफिट/लघुकथा
कमलेश भारतीय
अचानक वह एक ऊंचे पद पहुंच गया । उसे उच्च पद के मुताबिक बड़ी गाड़ी भी मिली और सरकारी बंगला भी । वह हैरान हुआ यह देखकर कि उसका ऑफिस कुछ कदमों की दूरी पर ही है । वह सुबह ड्राइवर को गाड़ी के लिए मना कर पैदल ही मस्ती में ऑफिस पहुंच गया । सबके सब चौंक गये और दूसरे अधिकारी समझाने आये कि ऐसे ऑफिस थोड़े आते हैं ।
- फिर कैसे आते हैं?
- ऑफिस की गाड़ी पर । आप तो सारा डेकोरम ही तहस नहस कर दोगे ।.
दूसरे दिन वह ऑफिशियल गाड़ी में तो आया लेकिन इससे पहले कि ड्राइवर उतर कर आये और गाड़ी का दरवाजा खोले, वह अपने आप ही दरवाजा खोल कर उतर गया ।.
फिर साथी अधिकारियों ने हल्ला मचा दिया और ऑफिस में आकर समझाने लगे कि ड्राइवर को गाड़ी का दरवाजा खोलने की परंपरा निभाने दीजिये, नहीं तो ये सिर पर चढ़ जायेंगे ।
वह फिर अनाड़ी ही साबित करार दिया गया ।
फिर वह एक क्लब में दोपहर का खाना खाने गया और ड्राइवर को सामने बिठा कर लंच का ऑर्डर दे दिया ।.
तभी फोन की घंटी बजी, ऐसी बात सुनने को मिली, जैसे कानों में कोई गर्म गर्म तेल डाल गया हो ।
फोन क्लब के प्रेजिडेंट का था जो कह रहा था कि आप कितने स्ट्रगल के बाद इस पद पर पहुँचे हो और ड्राइवर यहाँ अलाउड नहीं हैं, आप इसे बाहर बिठा कर लंच करवा सकते हो ।.
ओह! शिमला का माॅल रोड याद आ गया, पता नहीं क्यों ?
वहाँ कभी लिखा रहता था - डाग्स ए़ंड इंडियन्स आर नाट अलाउड।
अब वह सोचता जा रहा है कि कैसा विहेव करे । कहीं वह मिसफिट तो नहीं?