समाचार विश्लेषण/मूसेवाला, पंजाबी गीत और संदेश 

समाचार विश्लेषण/मूसेवाला, पंजाबी गीत और संदेश 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
पंजाब के संभवतः आजकल के सबसे चर्चित युवा गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद से अनेक मुद्दे और सवाल उठ रहे हैं । क्या मूसेवाला गन कल्चर को बढ़ावा दे रहे थे ? क्या वे गैंगस्टर्ज की धमकियों को हल्के में लेकर पलटवार कर रहे थे ? क्या पंजाबी गीतों को जो नया रंग ढंग दिया , उससे गैंगस्टर्ज नाराज थे या फिरौती वसूल नहीं कर पा रहे थे ? अनेक सवाल हैं और अनेक तरह की चर्चायें हैं । 
मूसेवाला को लगातार धमकियां मिल रही थीं । ऊपर से भगवंत मान की सरकार ने सिक्युरिटी वापस लेकर इसे यानी गायक की हत्या को और भी आसान बना दिया । अब इस हत्या से सबक लेकर बेशक फिर से अन्य लोगों को सिक्युरिटी दे दी गयी है लेकिन इससे मूसेवाला वापस नहीं आ पायेगा अपने मां बाप के पास । फिर इस सिक्युरिटी को हटा लेने को सार्वजनिक करना भी कोई सही कदम न था । इससे विरोधियों ने दूसरे दिन ही मूसेवाला को अपना निशाना बना लिया । मूसेवाला निश्चित ही बहुत दुर्भाग्यशाली रहे और इस तरह की निर्मम हत्या के तो बिल्कुल पात्र न थे । एक प्रतिभागी गायक का ऐसा दुखदायी अंत ...
मूसेवाला के बारे में अनेक बातें सामने आ रही हैं कि कैसे अपने कल्चर से , अपने गांव से प्रेम करते थे । कैसे कनाडा की सुख सुविधाजनक ज़िंदगी  छोड़कर अपने गांव मां बाप की सेवा करने आ गये । नयी कोठी बनवाई । ट्रैक्टर चलाने का शौक बरकरार रहा ।  इसके बावजूद गन कल्चर को गानों में दिखा कर विवादों में भी आए । आखिर गन ने ही जान ले ली और वह गन जो चीन से आई और देश में कैसे पहुंची इसका पता भी लगाया जा रहा है । 
बड़ी बात यह है कि गाने ऐसे होने चाहिएं जो समाज को कोई राह दिखायें । मनोरंजन तो करें ही । सिद्धू मूसेवाला ने सियासत और हमारी अन्य सामाजिक बुराइयों पर सीधी सीधे चोट की है अपने गानों में , जो गाने वह खुद ही लिखते थे । यही बात तो आ रही है कि होटल मैनेजमेंट करते समय जिस होटल पर ट्रेनिंग ले रहे थे , वहां उनके गाने खूब लोकप्रिय हो रहे थे और जब बताते कि मेरे लिखे गीत हैं तो कोई विश्वास न करता और हर कोई कहता कि तू और तेरे गाने ? अरे क्यों मजाक कर रहे हो ? इस तरह नौकरी छोड़कर गायक बनने का ही फैसला किया और हिट रहे बहुत थोड़े से सालों में तीस करोड़ रुपये की सम्पत्ति छोड़कर गये । कनाडा की कोठी , भारत की कोठी और अनेक गाड़ियां ।  इतने लापरवाह क्यों रहे धमकी मिलने के बाद भी ? इतनी लापरवाही कि न सिक्युरिटी और न बुलेटप्रूफ गाड़ी लेकर गये ? पिता पीछे पीछे भागे लेकिन तब तक काम तमाम कर चुके थे हत्यारे । 
एक समय गुरदास मान , मल्कियत सिंह , हरभजन मान भी प्रसिद्धि के शिखर पर रहे । गुरदास मान का गाया  'की बनूं दुनिया दा' गीत पंजाबी कल्चर के खो जाने पर गहरी चिंता वाला गीत रहा जो खूब चर्चित रहा ।
घुंड बी गये , घुंडवालियां बी गइयां
फुल्ल बी गये ते फुलकारियां बी गइयां 
हुन चल पये बिदेशी बाने
की बनूं दुनिया दा ....हाये 
पर वही गुरदास मान गाने लगे :
घर दी शराब होवे 
अपना पंजाब होवे ....
पंजाब तो अपना हो लेकिन शराब को बढ़ावा क्यों दे रहे हो भाई ?
मल्कियत सिंह अपने गाने के चलते आतंकवादियों के निशाने पर आ गये थे । जब गाया :
तूतक तूतक तूतियां 
हई जमालो 
आ जा गल्लां करिए खूह ते
हई जमालो ...
तो आतंकवादियों ने पूछ लिया कि वह तूतों वाला खूह यानी कुआं बता जहां दो बातें कर लें , जहां पूछ लें 
गुड़ नालों इश्क मिट्ठा कैसे ? वे विदेश निकल गये और बच गये । बहुत वर्षों बाद पंजाब वापस आये लेकिन फिर उनका जादू न चला ।
पंजाबी गाने नंदलाल नूरपुरी ने भी लिखे और थानेदारी कुर्बान कर लिखे :
नमाबरदारां दी प्रीतो ने अज्ज ऐसी झांजर पाई 
छनकाटा पैदा गली गली ...
किसी ने नंदलाल को कुछ नहीं कहा । हमारे दोस्त व पंजाबी ट्रिब्यून के शमशेर सिंह संधू ने कितने गाने लिखे :
तू नी बोलदी तेरे च तेरा यार बोलदा जैसे । अनेक गाने जिन पर आज सारा देश थिरकता है , लिखे शमशेर संधू ने लेकिन किसी ने धमकी न दी । सबको प्यारे लगे वे गीत । 
जो हंसराज हंस ने गाया :
कितों सिल्ली सिल्ली आंदी ऐ हवा 
किते कोई रोंदा होवेगा...
यादां तेरियां नूं सीने नाल ला
किते कोई रोंदा होवेगा...
क्या हमें सोचना नहीं चाहिए कि कैसे गीत देने हैं और गीतों के माध्यम से अपने समाज और मां बोली को कैसे संपन्न बनाना है ? 
बस । इतना ही सोच लें आने वाले गायक और गीतकार ।  
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।