आंदोलन और हिंसा की राह 

आंदोलन और हिंसा की राह 

-*कमलेश भारतीय
क्या शांतिपूर्ण तरीके से किये जाने वाले आंदोलन में हिंसा की कोई जगह है या होनी चाहिए? निश्चय ही गांधी के देश में आंदोलन में या आंदोलन के बाद हिंसा की कोई जगह नहीं।  फिर अचानक हिंसा का रास्ता अपना लेना कितना सही कदम माना जा सकता है? कल चंडीगढ़ के शहीद भगत सिंह एयरपोर्ट पर मंडी(हिमाचल) से नवनिर्वाचित सांसद व अभिनेत्री कंगना रानौत जब दिल्ली में संसदीय दल की बैठक में भाग लेने जा रही थीं तब वहीं सुरक्षाकर्मी के रूप में तैनात कुलविंदर कौर ने अचानक कंगना का रास्ता रोक लिया और किसान आंदोलन पर‌ दिये उनके बयान पर सवाल उठाते थप्पड़ जड़ दिया, जिससे वह एकदम सुन्न‌ रह गयीं। ‌यही नहीं कुलविंदर कौर ने कहा कि आपने एक वृद्ध महिला की फोटो लगाकर लिखा था कि यह महिला सौ रुपये लेकर धरने पर बैठी है जबकि मेरी मां भी धरने पर बैठी थी और मैं किसान आंदोलन का समर्थन करती हूँ। इसके बाद कंगना रानौत ने वीडियो जारी कर कहा कि वे बिल्कुल सही सलामत हैं लेकिन मेरी चिंता यह है कि जो आतंकवाद और‌ उग्रवाद पंजाब में बढ़ रहा है, उसे हम कैसे हैंडल करेंगे? 
यहां बता दें कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि एयरपोर्ट की घटना के बाद कंगना की पंजाबियों के खिलाफ नफरत भरी टिप्पणी उनकी पंजाब विरोधी मानसिकता की प्रतीक है। कुलविंदर कौर के भाई शेर सिंह ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि उनकी बहन ने ऐसा क्यों किया लेकिन उनकी मां शम्भू बार्डर पर किसान आंदोलन के दौरान धरने पर बैठी थी। अगर किसी की मां बहन को कोई बुरा भला बोलेगा तो किसी की भी भावनायें आहत होंगीं। ऐसा करने वाले को उसका जवाब भी मिलेगा। कुलविंदर कौर कपूरथला के निकट सुल्तानपुर लोधी के गाँव महिवाल की रहने वाली है और विवाहित है, उसके दो बच्चे भी हैं। ‌इस प्रकरण के बाद कुलविंदर कौर को निलम्बित कर दिया गया है जबकि कुलविंदर कौर का पति भी सुरक्षाकर्मी है। 
कंगना रानौत की बयानबाजी पर किसान आंदोलन के दौरान भी कड़ा एतराज उठाया गया था और कहते हैं कि इसके बाद कंगना ने वह पोस्ट हटा भी ली थी लेकिन लगता है कि कुलविंदर कौर के मन से वह पोस्ट हटी ही नहीं बल्कि बुरी तरह दर्ज रही और कल उसे अचानक अवसर मिल गया और उसने अपना गुस्सा निकालते ज़रा भी परिणाम के बारे में नहीं सोचा। 
हालांकि इस घटना के तुरंत बाद यह मामला सोशल मीडिया पर छा गया और किसी ने 'कर्मा' फिल्म का डायलॉग भी लिखा, जब दिलीप कुमार एक कैदी के रूप में अनुपम खेर को थप्पड़ मारते है और बदले में अनुपम खेर कहते हैं कि इस थप्पड़ की गूंज बहुत दूर तक जायेगी। क्या इस थप्पड़ से भी  पंजाब की छवि पर असर पड़ेगा? क्या इस मामले को कंगना द्वारा आतंकवाद व उग्रवाद से जोड़कर बयान देना फिर जल्दबाजी नहीं? पंजाब में आप की स्थिर सरकार पर गाज गिराने का यह अवसर तो नहीं बना लिया जायेगा? बयानबाजी करते समय दूसरों की भावनाओं का ध्यान तो रखना ही चाहिए जबकि किसी भी आंदोलन में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह थप्पड़ कांड क्या रंग दिखायेगा? दिल्ली में बहुत पहले एक पत्रकार जरनैल सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम की ओर जूता फेंक कर मारा था और उसे `आप' की ओर से टिकट दे दी गयी, वह विधायक भी बन गया। ‌कहीं कोई राजनीतिक दल कुलविंदर कौर को भी टिकट की ऑफर न दे दे। वैसे अनेक नेताओं पर इस तरह थप्पड़ मारने या जूता फेंकने की घटनायें अतीत में हो चुकी हैं, जो निंदनीय हैं। 
खैर, इस तरह की घटनायें भविष्य में न  हों तो अच्छा। यह गांधी का देश है, जहां एक थप्पड़ खाने के बाद दूसरा गाल आगे कर दिया जाता है न कि आगे से आकर थप्पड़ मारा जाता है। 
संत कबीर कह गये हैं:
वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोये
औरन को शीतल करे, आपहिं शीतल होये! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।