शुद्ध हवा, पानी के लिए आंदोलन 

शुद्ध हवा, पानी के लिए आंदोलन 

-*कमलेश भारतीय
यह भी खूब रही । शुद्ध हवा और पानी के लिए भी आंदोलन करना पड़ रहा है और उससे भी ज्यादा खूब यह कि शांतिपूर्ण तरीके से अहिंसक आंदोलन के लिए भी दिल्ली का जंतर मंतर उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा । इसीलिए इस आंदोलन के सर्वेसर्वा प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सोनम बांगचुक ने बहुत आहत होकर कहा कि अपने देश में जो देशभक्त हैं, उन्हें देशविरोधी  बताने का प्रयास किया जा रहा है जबकि जो देशविरोधी हैं, उन्हें देशभक्त बताया जा रहा है । हमारा आंदोलन पूर्णतया अहिंसक आंदोलन है, फिर भी जंतर मंतर पर धरने की अनुमति नहीं दी गयी और हम अपने बच्चों के लिए शुद्ध हवा, शुद्ध पानी व खाद्य सुरक्षा के लिए आंदोलन कर रहे हैं न कि हम किसी प्रकार से राजनीति से जुड़े हैं । फिर हमारे आंदोलन से सरकार को क्या डर है? वे लोगों को हमारे साथ जुड़ने से क्यों डर रहे हैं ? हमारा उद्देश्य तो देश को सिर्फ जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति सावधान करना है। हमारे आंदोलन को जबरदस्त समर्थन मिलने से सरकार घबरा गयी है और कुछ नहीं । दुख की बात यह है कि सरकार अपने बंगलों में अटकी है और लोग घरों में । बड़े़ कारपोरेट समूह एड़ी चोटी का ज़ोर लगाकर हमारे आंदोलन को रोकने की साजिश रच रहे हैं । हम राजनीतिक दलों को अपने आंदोलन का हिस्सा नहीं बनाना चाहते और हमे शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति मिलनी चाहिए। 
यह स्थिति है जलवायु संरक्षण के लिए निकले पर्यावरणविद् सोनम की, जो दिल्ली के लद्दाख़ हाउस में पिछले दो सप्ताह से अनशन पर हैं । वे कहते हैं कि हिमालय सबका घर है और इसकी रक्षा होगी तभी मानवता सुरक्षित रह पायेगी । शायद सुंदरलाल बहुगुणा के बाद सोनम बांगचुक इस दिशा में प्रयासरत हैं । 
यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि उत्तराखंड के जोशीमठ व बद्रीनाथ में कैसे कैसे मंज़र देखने सुनने को मिले ।  दुष्यंत कुमार कहते हैं : 
कैसे कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं 
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं ! 

हिमालय की गोद में बसे हिमाचल और उत्तराखंड में जाने का अवसर मिलता रहता है । देहरादून के पास सहस्तरधारा का वर्तमान रूप देखकर दिल उदास हो गया कि कैसे साफ स्वच्छ जल का स्त्रोत इतना मटमैला कर दिया हमने । मसूरी के निकट कैम्पटी फाॅल के ऊपर कितने रिसोर्ट बन गये कि असली कैम्पटी फाॅल देखने का अनुभव ही कसैला स्वाद देने लगा । रास्ते भर गाड़ियों के रेंगते काफिलों से सहम कर दिल ने कहा कि कौन सी शुद्ध हवा लेने यहां आये हो, यहां तो मैदान से भी ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं पर्यटक । यहां भी चैन न मिला तो कहां जायेंगे ? मनाली के रास्ते में भी नदियां प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे पर्यटक । पर्यटक यानी हम और कौन ? पहाड़ की छाती पर बहुमंजिला होटल जैसे प्रकृति के साथ अमानुष व्यवहार से कम नहीं । चिप्स और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें यहां वहां फेंक कर आगे बढ़ते जाते हैं हम । स्वच्छ भारत की चिंता किसे है ? जिन्हें है, उन्हें लद्दाख़ हाउस में बंद रखो, लोगों में न जाने दो । आइये, हवा, पानी को शुद्ध करने की दिशा में पहला कदम बढ़ायें ।  संभवत: सोनम वांगचुक यही कह रहे हैं: 

मैं अकेला ही चला था, जानिबे मंज़िल

मगर लोग आते गये कारवां बनता गया !! 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।