मेरा अध्यक्ष बनना भाषायी दुर्भावना का अंत : माधव कौशिक, साहित्य अकादमी अध्यक्ष
-कमलेश भारतीय
मेरा साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनना देश में हिंदी की स्वीकार्यता है । यह कहना है साहित्य अकादमी के इसी ग्यारह मार्च को अध्यक्ष चुने गये साहित्यकार और मूल रूप से हरियाणा के भिवानी के निवासी माधव कौशिक का । वैसे वे लम्बे समय से चंडीगढ़ रह रहे हैं और चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी हैं । मेरा इनसे सम्पर्क सन् 1990 से है जब दैनिक ट्रिब्यून में उपसंपादक के रूप में आया था और माधव कौशिक एजी ऑफिस , पंजाब के राजभाषा मंडल में कार्यरत थे और अंकुर पत्रिका का संपादन करते थे जिसमे मेरी रचनाओं को भी सम्मानपूर्वक प्रकशित किया । भिवानी में प्रारम्भिक रूप से एक शिक्षक के रूप में जीवन शुरू करके आज माधव कौशिक देश की सबसे बड़ी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष पद पर पहुंचे हैं । यह हरियाणा के लिये गर्व और गौरव की बात है । भिवानी को छोटी काशी कहा जाता है और माधव का कहना है कि घर में पिता से पठन पाठन के संस्कार मिले ।
-शिक्षा कितनी और कहां से ?
-ग्रेजुएशन वैश्य काॅलेज , भिवानी से और बीएड भी भिवानी से ही की । इसके बाद एम ए हिंदी पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से और अनुवाद में डिप्लोमा भी इसी विश्वविद्यालय से ।
-पहली जाॅब ?
-भिवानी में ही शिक्षक रहा सन् 1976 से 1980 तक ।
-फिर ?
-चंडीगढ़ एजी ऑफिस, पंजाब में राजभाषा मंडल में । अंकुर पत्रिका का संपादन । फिर डेपुटेशन पर ऑडिट विभाग में और वहा सुगंधा पत्रिका का संपादन किया ।
-चंडीगढ़ साहित्य अकादमी से नाता कब ?
-सन् 2000 में चंडीगढ़ साहित्य अकादमी का पहले सचिव रहा और फिर अध्यक्ष !
-साहित्य अकादमी में कब ?
-सन् 2008 से सन् 2012 तक हिंदी परामर्श मंडल का सदस्य । फिर सन् 2018 से 2022 तक उपाध्यक्ष और अब ग्यारह मार्च से अध्यक्ष पद पर चुना गया । प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का सदस्य भी हूं ।
-कैसा लगा इस पद पर चुने जाने पर ?
-पहली बात यह कि हिंदी को देश भर में स्वीकार्यता मिली । मुझे जितने वोट आये वे पहले कभी अध्यक्ष को नहीं मिले । इससे भाषाई दुर्भावना खत्म हुई है । दूसरा सामान्यतः जो नीचे से ऊपर कदम दर कदम जाता है उसमें खुशी का अतिरेक कम और जिम्मेदारी की भावना ज्यादा होती है ।
-घर में साहित्य का कैसा माहौल था ?
-मेरे पिता जी प्रह्लाद किशन कौशिक अध्यापक थे और घर में किताबें ही किताबें थीं जिससे साहित्यिक संस्कार मिले । वे खुद उर्दू के विद्वान थे । ऊपर से भिवानी में भी साहित्यिक गतिविधियां खूब थीं । राजयकवि उदय भानु हंस वहीं थे ।
-चंडीगढ़ आकर कितने साहित्यिक हुए ?
-और भी ज्यादा । सन् 1986 में मेरे प्रथम गजल संग्रह -आइनों के शहर में आया और खूब चर्चित रहा । फिर तो देश की बड़ी पत्रिकाओं धर्मयुग , सारिका आदि में मेरी रचनायें आती गयीं ।
-अब तक कितनी किताबें ?
-चालीस । गजल संग्रह तो हैं ही तीन कथा संग्रह भी हैं । रचनाओं व पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है ।
-प्रमुख सम्मान /पुरस्कार ?
-हरियाणा का आजीवन साहित्य साधना पुरस्कार , पंजाब का साहित्य शिरोमणि और केंद्रीय हिंदी संस्थान की ओर से सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार । पाठ्यक्रमों में भी मेरी रचनायें व पुस्तकें शामिल ।
-अब क्या योजना है मन में ?
-भारतीय भाषाओं में एकात्म लाना है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय भाषाओं के प्रति जिज्ञासा और आकर्षण है । हमें इसे और आगे बढ़ाना है ।
-हरियाणा में साहित्य की स्थिति पर, क्या कहेंगे ?
-हरियाणा की साहित्यिक पृष्ठभूमि बहुत समृद्ध और शानदार है । हर विधा में खूब लिखा जा रहा है । हरियाणा में साहित्य अकादमी साहित्यिक गतिविधियों को पूर्ण सहयोग देगी ।
-इतनी सारी जिम्मेदारियों के बीच खुद का लेखन कैसा चल रहा है ?
-मैं जितना व्यस्त होता हूं , उतना ही ज्यादा लिखता हूं । साल में एक दो किताबें आती रहती हैं ।
हमारी शुभकामनाएं माधव कौशिक को ।