समाचार विश्लेषण/मेरा कश्मीर यानी कश्मीर में लोकतंत्र
-कमलेश भारतीय
जम्मू कश्मीर फिर चर्चा में है । पहले तीन तीन पूर्व मुख्यमंत्री नज़रबंद रहे लम्बे समय तक । फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती । इन्हें मिलने खासतौर पर गये थे कांग्रेस नेता गुलाम नवी आज़ाद और इनकी रिहाई की आवाज़ भी उठाई । अब तो गुलाम नवी जी 23 समूह के नेता हैं । आखिर ये तीनों रिहा हुए तो कोरोना ने नज़रबंद कर दिये । अब कोरोना कम हुआ तो ये नेता बाहर निकले और गुपकार बैठक की । फिर प्रधानमंत्री से भी दिल्ली में मिले । यानी घाटी में एक बार फिर लोकतंत्र की बहाली की आस बन रही है । इससे पहले भाजपा ने महबूबा मुफ्ती से मिलकर गठबंधन सरकार चलाई जरूर लेकिन बात नहीं बनी । उलटे अपनी ही छवि खराब की और जब स्थितियां ज्यादा बिगड़ने लगीं तब गठबंधन तोड़ कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया। जम्मू कश्मीर शापित है लम्बे लम्बे राष्ट्रपति शासन के लिए ।केंद्र सरकार ने धारा 370 खत्म कर ऐसे साबित किया जैसे चांद पर आप प्लाट खरीद सकें , उसके बराबर का काम कर दिया हो । पर न किसी ने चांद पर प्लाट खरीदा और न ही शायद कश्मीर में । सिर्फ एक प्रचार बन कर रह गया । हरियाणा के मुख्य मंत्री तक कह गये थे कि अब कश्मीरी बहू ला सकोगे । इस बयान की बहुत आलोचना होती रही । अभिनेता अनुपम खेर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रहे और उन्हें बड़ी उम्मीद थी कि कश्मीरी पंडित वापस अपने घर लौट सकेंगे लेकिन उनकी उम्मीद भी टूटी और सुर बदले ।
अब पूर्ण राज्य का दर्जा पहले मांगा जा रहा है और चुनाव बाद में करवाने की बात कही जा रही है। इसी प्रकार धारा 370 की बहाली की मांग भी की जा रही है । लगता है कि सब वहीं का वहीं रह गया । सारी कोशिशें बेकार हो गयीं । सब नये सिरे से शुरू होगा । देखें क्या होता है इन बैठकों का नतीजा ?