नलवा : पानी और विकास को तरसता ग्रामीण क्षेत्र
कांग्रेस में टिकट की सबसे ज्यादा मारामारी
-*कमलेश भारतीय
जिलाा हिसार का नलवा विधानसभा क्षेत्र सन् 2009 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया जबकि घिराय समाप्त कर दिया गया । जी हां, वही घिराय जहां युवा व नये प्रो छत्रपाल ने दिग्गज चौ देवीलाल को राजनीति में अपने पहले ही कदम में चित्त कर दिया था । नलवा के बारे में सबसे दिलचस्प जानकारी यह है कि स्टीलमैन बाबू ओमप्रकाश जिंदल यहीं के मूल निवासी थे, जिन्होंने स्टील उद्योग में झंडे गाड़ दिये। इसके बावजूद जिंदल ने राजनीति के लिए नलवा को नहीं, हिसार और कुरूक्षेत्र को चुना। नलवा क्षेत्र में 54 ग्राम पंचायतें आती हैं और इसके मतदाताओं की संख्या एक अनुमान के अनुसार एक लाख अस्सी हज़ार है । नलवा आज तक पानी और विकास को तरस रहा है, यह भी इसकी पहचान है । सन् 2009 में अस्तित्व में आने के बाद अब तक तीन विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, इस बार चौथा चुनाव होने जा रहा है ।
घिराय की तरह भट्ट कलां क्षेत्र भी सन् 2009 में परिसीमन की लपेट में आ गया था और इसका अस्तित्व खत्म हो गया। भट्ट कलां पूर्व म़ंत्री व प्रभावशाली नेता प्रो सम्पत सिंह का कार्यक्षेत्र था, अब वे कहां जायें या उन्हें कहां से मैदान मे उतारा जाये ? वैसे वे एक बार फतेहाबाद का उपचुनाव भी जीते थे लेकिन नये विधानसभा क्षेत्र नलवा से उन्हें चुनाव मैदान में उतारा गया कांग्रेस की ओर से, क्योंकि वे इनेलो छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम चुके थे। नलवा में मुख्य तौर पर जाट, बिश्नोई और प्रजापति समिज से संबद्ध लोगों का बोलवाला है । हजकां को कुलदीप बिश्नोई संगठित कर चुके थे । इस तरह सन् 2009 का पहला मुकाबला जसमां देवी व प्रो सम्पत सिंह और रणबीर गंगवा में हुआ में हुआ, जिसमें प्रो सम्पत सिंह बाजी मार गये ! शिष्य रणबीर गंगवा को हार का मुंह देखना पड़ा । इस तरह प्रो सम्पत सिंह को नयी कर्मभूमि मिल गयी नलवा विधानसभा क्षेत्र। यह कर्मभूमि विकास में पिछड़ी हुई थी तो पेयजल व सिंचाई जल दोनो को तरस रही थी । पांच साल जो मिले प्रतिनिधित्व करने में तो इसके विकास के लिए पहले इसे निगम का हिस्सा बनवाया और आज़ाद नगर में चार चार कम्युनिटी सेंटर बनवाये, वाटर वर्क्स बनवाये और छह एकड़ में शानदार पार्क बनवाया। अनेक विकास कार्य करवाये ।
लेकिन सन् 2014 के चुनाव में इनेलो की टिकट पर रणबीर गंगवा फिर आ गये जबकि 2019 में वे भाजपा की टिकट पर लड़े क्योंकि इनेलो में पारिवारिक व विचारधारा के कारण बिखराव हुआ और रणवीर गंगवा न इनेलो और न ही जजपा में गये बल्कि भाजपा में शामिल हो गये थे । यही नहीं प्रो सम्पत सिंह भी कांग्रेस की ओर से फिर मैदान में थे । इस तरह सन् 2014 के चुनाव को गुरु शिष्य के बीच दूसरा चुनाव कहा गया। वैसे रणबीर गंगवा को इनेलो में रहते राज्यसभा में पहुंचाया गया था लेकिन विधानसभा चुनाव वे दूसरी बार लड़े और गुरु को पराजित करने में सफल रहे ! मज़ेदार बात कि हजकां की टिकट पर चंद्रमोहन भी हारे पर वे दूसरे नम्बर पर रहे। फिर सन् 2019 का चुनाव आया । भाजपा की ओर से तो रणबीर गंगवा ही रहे लेकिन प्रो सम्पत सिंह, जो कांग्रेस की टिकट के प्रबल दावेदार थे, उनका टिकट ही कट गया, यह एक आश्चर्य था राजनीति के गलियारों में और कांग्रेस टिकट मिला रणधीर पनिहार को, जो कुलदीप बिश्नोई का दायां हाथ माने जाते हैं । सन् 2019 के चुनाव में जजपा की ओर से पहली बार युवा बीरेंद्र चौधरी ने भी राजनीति में कदम रखा लेकिन विजयश्री ने उनके गले में माला नहीं डाली बल्कि भाजपा के रणबीर गंगवा ही जीते और डिप्टी स्पीकर जैसा सम्मान मिला।
अब सन् 2024 के विधानसभा चुनाव में हवा का रुख देखते हुए सबसे ज़्यादा मारामारी कांग्रेस टिकट के लिए हो रही है । कांग्रेस में प्रो सम्पत सिंह या उनके बेटे गौरव सिंह में से कौन ? गौरव सिंह ने अपने कुशल राजनीतिक कौशल का परिचय आदमपुर उपचुनाव में दिखाया था, जब वे दीपेन्द्र हुड्डा के सारथि यानी सलाहकार की भूमिका में आ गये थे और उनके सारे कार्यक्रम वही तय करते रहे और कांग्रेस को सीधी टक्कर में ला खड़ा किया ! वैसे भी दीपेंद्र व गौरव की एसोसिएशन पुरानी है, जब दोनों मेयो काॅलेज, अजमेर में पढ़ते थे । दीपेंद्र सीनियर तो गौरव जूनियर थे । प्रो सम्पत सिंह लगातार गांवों में जनसम्पर्क चलाये हुए हैं । प्रो सम्पत सिंह श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के निकट हैं । बेटे गौरव ने राजनीति में उतरने के लिए खूब मेहनत की है । अपनी छवि बनाने की कोशिश की है। वे कहते हैं कि जैसे के बी सिंह के बेटे अमित सिहाग को जिला सिरसा में मौका मिला, वैसा मौका गौरव अपने लिए चाहते हैं, जिससे वे सिद्ध कर सकें कि वे अपने दम पर राजनीति कर रहे हैं । इसी प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष श्री हुड्डा के करीबी धर्मवीर गोयत भी लगातार सक्रिय हैं । बीच में कुछ समय ऑप्रेशन के कारण आराम के बाद फिर फुल फाॅर्म में आ चुके हैं । इसी प्रकार अनिल मान भी कांग्रेस टिकट के दावेदार हैं और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रहे चंद्रप्रकाश भी इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ने के इच्छुक बताये जा रहे हैं । सबसे नयी एंट्री श्रवण कुमार वर्मा की हुई है, जो सांसद जयप्रकाश के करीबी माने जा रहे हैं । क्या पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन फिर से नलवा से टिकट मांगेगे या कालका की ओर लौटेंगे ? वैसे वे आजकल सुश्री सैलजा के साथ साथ हैं । इनके इलावा अभी तक कोई प्रमुख दावेदार कांग्रेस में नज़र नहीं आ रहा । जहां तक जजपा की बात है तो सन् 2019 में पहला चुनाव हार जाने के बाद भी बीरेंद्र चौधरी दिल नहीं हारे और लगातार पांच वर्ष नलवा के ग्रामीण क्षेत्र में सामाजिक कार्य चलाते रहे । रही बात इनेलो बसपा गठबंधन की तो अभी यह क्षेत्र किसके खाते में जाता है, तब कोई नाम सामने आयेगा पर भाजपा में रणबीर गंगवा को तीसरी बार टिकट दिया जायेगा तो रणधीर पनिहार को कहां और कैसे एडजस्ट किया जायेगा ? क्या रणबीर गंगवा जीत की हैट्रिक लगा पायेंगे ? कुछ ऐसा दृश्य नलवा का दिख रहा है और नलवा की राजनीतिक शतरंज इसी तरह की सामने आ रही है । देखते हैं, मैदान कौन मारता है और मैदान में किसको उतारा जाता है।
नलवा महिला काॅलेज, युवाओं के लिए रोज़गार और पानी के लिए अब भी राह देख रहा है।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।