देश , पद और कांग्रेस
-कमलेश भारतीय
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता
देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता । अनेक बार इसका जिक्र करता हूं । बहुत प्यारी कविता । आज कांग्रेस के हिसाब से याद आ गयी । कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में जो हुआ वह सबको मालूम हो गया । गये थे स्थायी अध्यक्ष खोजने लेकिन जैसे थे , वैसे ही लौट आए या कहें कि खाली हाथ लौट आए । यदि सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष बनाये रखना था फिर चार लोग बैठ कर किस बात पर मंथन पर मंथन किए जा रहे थे ? दो नाम तो साफ तौर पर सामने आ गये -गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल । एक को जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री तक बनाया तो दूसरे को केंद्रीय शिक्षा मंत्री तक । यानी जैसा सचिन पायलट को सम्मान दिया , वैसा ही इन वरिष्ठ कांग्रेसजनों को मिला । क्या क्या नहीं दिया? गुलाम नबी आजाद तो हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी हैं । और भी कितने महत्त्वपूर्ण पदों पर सुशोभित किया जाता रहा । राज्यसभा में विपक्ष के नेता बना रखा है । ऐसे व्यक्ति भी अभी संतुष्ट नहीं ।
अब कपिल सिब्बल देश की दुहाई दे रहे हैं कि बात पद की नहीं , देश की है । यानी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से भी बड़ी बात । यह गलत तो नहीं कहा । देश है तो , कांग्रेस है । या कोई भी पार्टी है । नहीं तो स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस ने क्या नहीं किया ? सबसे पुरानी पार्टी में नेतृत्व को लेकर घमासान मचा है । जब देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है तब कांग्रेस नित नये आपसी दंगल में दिखती है । क्यों ? कभी यह दंगल मध्य प्रदेश में दिखता है तो कभी राजस्थान में । कभी किसी प्रदेश में तो कभी किसी में । इसीलिए कांग्रेस विपक्ष के तौर पर कभी भाजपा पर हमलावर नहीं हो सकी । भाजपा मनमर्जी पर उतर आई है और उतरती जा रही है क्योंकि विपक्ष की कोई चिंता नहीं रही । कोरोना काल में भी कोई सार्थक भूमिका नहीं निभाई । एक अकेले सोनू सूद ने ही वह कर दिखाया जो कोई बड़ी पार्टी नहीं कर सकी । हमेशा आलोचना ही नहीं , कभी कभी विपक्ष को सामाजिक कार्यों में भी आगे आना चाहिए और कांग्रेस पुराने समय में ऐसा करती रही है । जैसे प्रवासी मजदूरों से मिले तो राहुल लेकिन कोई योजना तो नहीं बनाई इनके लिए । इसलिए इसे भाजपा ने एक फोटो शूट मात्र करार दिया । कांग्रेस देश नहीं है । लेकिन देश के लिए स्वतंत्रता से पूर्व और बाद में बहुत कुछ किया है । अब भी कर सकती है । इसलिए इसके नेतृत्व का संकट हल किया जाना चाहिए और एक नयी शुरूआत की जानी चाहिए । नहीं तो दिन-प्रतिदिन रसातल की ओर तो बढ़ ही रही है । बचाना पार्टी के नेताओं को है । हम तो चर्चा कर सकते हैं ।