जीएनडीयू में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रीय वेब-संवाद का आयोजन

गोवा से प्रसिद्ध पत्रकार व कंटेंट लेखक परविंदर संधू ने कहा कि नारी को सशक्त बनाए बगैर हम मानवता को सशक्त नहीं बना सकते

जीएनडीयू में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रीय वेब-संवाद का आयोजन

अमृतसर: गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर की ईओसी-पीडबल्यूडी और ड्रामा क्लब द्वारा विश्व भाषा अकादमी, भारत के सौजन्य से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय वेब-संवाद ' सशक्त महिला: सशक्त मानवता' का आयोजन किया गया।दिव्यांगजनों के लिए विश्वविद्यालय के नोडल अधिकारी, ड्रामा  क्लब के प्रभारी, हिंदी-विभाग के फैकल्टी और विश्व भाषा अकादमी, पंजाब के महासचिव डॉ. सुनील कुमार ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है।इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृत कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास और धर्म की उपासना की स्वतंत्रता और अवसर की समानता का सुअवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है। महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है ताकि उन्हें रोजगार,शिक्षा और आर्थिक तरक्की के बराबर के मौके मिल सकें।उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति डॉ.जसपाल सिंह संधू के कुशल नेतृत्व और प्रेरणा से महिलाओं, दिव्यांगजनों के अधिकारों के संरक्षण और सुविधाएं प्रदान करने के लिए निरंतर व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

अपने उद्घाटन वक्तव्य में विश्वविद्यालय के डीन, अकादमिक मामले प्रोफ़ेसर एस.एस.बहल ने महिलाएं देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं।इसी वजह से राष्ट्र के विकास के महान काम में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को वह स्थान नहीं मिल सकता जिसकी वह  हमेशा से हकदार रही है।लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास करने की आवश्यकता है।इस दौरान प्रोफ़ेसर बहल ने महिलाओं के विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर आधारित एक विशेष डॉक्युमेंट्री भी प्रदर्शित की।

स्टूडियो पीएमबी, लीविंग बाई स्टूडियो पीएमबी की प्रिंसीपल, फुलकारी महिला संगठन, अमृतसर की संस्थापक, समाजसेवी, आर्किटेक्ट परनीत बब्बर ने कहा कि महिलाओं के साथ अत्याचार लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं।इस समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा दिलाने के लिए महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकता है।आज भी हमारे देश की। महिलाओं को घरेलू हिंसा,असमानता,बलात्कार, यौन हिंसा, मानव तस्करी, दहेज जैसी कुप्रथाओं और अत्याचारों का सामना करना पड़ता है।इसीलिए महिला सशक्तिकरण बहुत आवश्यक है।

चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट-कम-सिविल जज (सीनियर डिवीजन), कैथल डॉ.रजनी कौशल ने अपने विशेष वक्तव्य में कहा कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई कानून बनाए गये हैं जिनमें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम, दहेज निषेध अधिनियम, मातृत्व लाभ व गर्भावस्था अधिनियम,बाल विवाह रोकथाम अधिनियम,विदेशी विवाह अधिनियम, लिंग परीक्षण तकनीक अधिनियम, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम,महिला आरक्षण अधिनियम, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, भारतीय उतराधिकार अधिनियम आदि।सरकार द्वारा इतने  सारे कानून बनाए जाने के बावजूद भी महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय है।हालांकि महिला सशक्तिकरण की मुहिम का सकारात्मक असर भी अब नजर आने लगा है जिसकी सराहना की जानी चाहिए।

जीएनडीयू, अमृतसर के हिन्दी-विभाग की प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष डॉ.सुधा जितेन्द्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्राचीन युग से हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है।कोई भी परिवार,समाज या राष्ट्र तब तक सच्चे अर्थों में प्रगति के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता जब तक नारी के प्रति भेदभाव, निरादर व हीन भावना का त्याग नहीं करता है।उन्होंने व्यावहारिक अनुभवों के धरातल पर महिला सशक्तिकरण की परतें खोली।

राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, पटियाला में इतिहास की सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. रचना शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारा समाज ऐसा समाज है जिसमें कई तरह के रीति-रिवाज, मान्यताएं, परंपराएं शामिल हैं और यही कुछ परंपराएं महिला सशक्तिकरण के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी समस्याएं हैं।वास्तव में सशक्तिकरण लाने के लिए महिलाओं को अपने स्वयं के अधिकारों के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है।

एम.एस.यूनिवर्सिटी, बड़ौदा के हिन्दी-विभाग की प्रोफ़ेसर डॉ.शन्नो पांडेय ने अपने वक्तव्य में   कहा कि प्राचीन काल में नारी को विशिष्ट सम्मान एवं पूजनीय दृष्टि से देखा जाता था।सीता,सती,सावित्री,अनुसूया, गायत्री आदि अनगिनत भारतीय नारियों ने अपना विशिष्ट स्थान सिद्ध किया है।वैदिक काल में जो नारी शीर्ष स्थान पर रही आज उसके सशक्तिकरण की आवश्यकता महसूस हो रही है।ऐसा नहीं है कि भारत में नारी सशक्तिकरण करने के लिए प्रयास नहीं किया गया है।हमारे देश में नारी सशक्तिकरण पर बल देकर महिलाओं को और आगे बढ़ाने का प्रयास यह समय जारी रहता है।उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मात्र पुरुष महिला सशक्तिकरण में बाधक नहीं है।अगर पुरुष को सशक्तिकरण में बाधक मानें तो महिला को भी बाधक मानना पड़ेगा।पुरुष का निरा विरोध महिला सशक्तिकरण का परिचायक नहीं कहा जा सकता‌।

गोवा से प्रसिद्ध पत्रकार व कंटेंट लेखक श्रीमती परविंदर संधू ने कहा कि नारी को सशक्त बनाए बगैर हम मानवता को सशक्त नहीं बना सकते।संवेदना,करुणा,वात्सल्य, ममता,प्रेम,विनम्रता, सहनशीलता आदि नारी के वे गुण हैं जिससे वह मानवता को निखार और संवार कर उसे सशक्त बना सकती है।

कार्यक्रम के अंत में डॉ.सुनील कुमार ने मेहमानों, विश्वविद्यालय-प्रशासन,विश्व भाषा अकादमी,भारत के चेयरमैन श्री मुकेश शर्मा, तकनीकी सहयोगी ऋषभ,ड्रामा क्लब की टीम, जनसंपर्क विभाग, मीडिया और प्रतिभागियों का धन्यवाद  ज्ञापित किया। कार्यक्रम की सह-संयोजिका और विश्व भाषा अकादमी,पंजाब की अध्यक्ष डॉ.ज्योति गोगिया ने बड़ी ही खूबसूरती से मंच- संचालन किया।इस राष्ट्रीय वेब-संवाद में देश-विदेश से बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।