समाचार विश्लेषण/किसान आंदोलन पर मंथन की जरूरत?
-कमलेश भारतीय
लगभग तीन माह से चल रहे किसान आंदोलन पर मंथन की जरूरत महसूस सोने लगी है । इसका बड़ा कारण वार्ता की राह बंद हो जाना है । इससे युवा कार्यकर्ता थोड़े बेचैन होने लगे हैं । दूसरा गेहूं की फसल की संभाल का समय भी आ गया । किसान का एक पांव आंदोलन में है तो दूसरा पांव खेत में । फसल संभालने जाते हैं और फिर आते हैं ।
इन बातों की ओर ध्यान करते हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा है कि उन्नीस दिन में हरियाणा में ही दस बड़ी महापंचायतें हुई हैं लेकिन मोर्चे पर बैठने वाले स्थल पर मात्र तीन । इसलिए महापंचायतें बंद कर बाॅर्डर मजबूत किया जाये । यह आह्वान बहुत सही है । लोगों में गोदी मीडिया खाली बाॅर्डर दिखा कर किसान आंदोलन को असफल घोषित करने में जुट गया है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक फोन काॅल की दूरी पर बैठे हैं तो कृषि मंत्री पंजाब निकाय चुनाव परिणाम का विश्लेषण करने में लगे हैं । भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री को पश्चिमी बंगाल के चुनाव से फुर्सत नहीं है । फिर किसान आंदोलन को समाप्त कौन करेगा ? क्यों करेगा ? सरकार पीछे कदम हटाना नहीं चाहती और हारने को तैयार नहीं । बेशक पंजाब में नुकसान उठा लिया या आगे चुनावों में भी उठाना पड़े । यह वही भाजपा है जो अपने अध्यक्ष के बेटे के मामले के बाद भी उन्हें पद से नहीं हटाती । फिर कृषि कानून वापस कैसे ले ले ? यह वही भाजपा है जो कांग्रेस मुक्त भारत करते करते कांग्रेस युक्त भाजपा बनती चली गयी ।
वैसे गुरनाम सिंह चढ़ूनी की बात में दम है । अब किसान नेता अपनी अपनी डफली बजाने लगे हैं । कुरूक्षेत्र में राकेश टिकैत महा पंचायत करने आए तो चढूनी के पास अपने कार्यक्रम थे । वे शामिल नहीं हुए । यह दूरी बहुत खलने लगी है । फिर एक समय योगेंद्र यादव बहुत सक्रिय थे । आजकल वे कहां हैं और किसान आंदोलन में कितना योगदान कर रहे हैं ?
ऐसा लगता है कि किसान आंदोलन का छब्बीस जनवरी के बाद बड़ा चेहरा राकेश टिकैत के बन जाने से कहीं मतभेद शुरू हो गये हैं । हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने यह घोषणा की है कि 23 फरवरी को पगड़ी संभाल जट्टा दिवस के रूप में मनायेंगे पर पहले किसान नेता फिर से दिल से एकजुट हों तो किसान आंदोलन की मजबूती बने ।