समाचार विश्लेषण/न चेहरा बदला, न खेला हुआ पश्चिमी बंगाल में
-कमलेश भारतीय
आखिर पांच राज्यों के चिरप्रतीक्षित चुनाव परिणाम आज सुबह से आ रहे हैं। शुरूआती रुझानों को देखा जाये तो पश्चिमी बंगाल में दीदी ममता बनर्जी का चेहरा बदलने की कोशिश सफल होती नहीं दिख रही । खेला करने गये जरूर थे पश्चिमी बंगाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्ढा लेकिन खेल हो न पाया । कितना बड़ा संकट मोल लिया कोरोना के चलते लेकिन बड़ी बड़ी रैलियां और रोड शो किये जाते रहे । तृणमूल कांग्रेस को चुनाव शुरू होने से पहले विधायक अपनी ओर मिला कर कमज़ोर करने का प्रयास किया गया। यही नहीं ममता बनर्जी के भतीजे पर केंद्रीय एजेंसियों ने छापे बार कर इमेज खराब करने की कोशिश की गयी जो कारगर नहीं रही । ममता बनर्जी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बार बार कहे कि बेशक मोदी ममता बनर्जी के समान ही लोकप्रिय हैं लेकिन भाजपा सौ सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगी । अनुमानों के अनुसार प्रशांत किशोर की बात सही साबित होती दिखती है ।
दूसरी बात कि पश्चभी बंगाल में चेहरों पर चुनाव लड़ा गया था । एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा था तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी का चेहरा रहा । यहां तक माकपा और कांग्रेस की बात है तो इन दलों ने सोची समझी रणनीति के तहत अपनी कोशिश कम से कम कर इस चुनाव को भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में सीधा मुकाबला बनने दिया । यही कारण है कि कांग्रेस और माकपा ने जीतने की जिद्द ही नहीं की । राहुल गांधी तो प्रचार करने ही चार चरण के बाद गये और बाद में कोरोना के चलते चुनाव प्रचार करने से तौबा कर ली । तृणमूल कांग्रेस का नारा नहीं था कि दो सौ से पार जायेंगे । भाजपा का नारा था कि दो सौ से पार और हुआ क्या एक सौ का आंकड़ा भी छूती दिखाई नहीं दे रही । ममता बनर्जी बेशक अपने प्रतिद्वंद्वी शुभेंदु से हार रही हैं लेकिन यह सबका कहना है कि ममता बनर्जी ही मुख्यमंत्री बनेंगी। वहीं छह माह बाद किसी सुरक्षित सीट से कोई वफादार विधायक त्यागपत्र देकर अपनी सीट ऑफर करेगा ।
इससे भाजपा कोई सबक लेगी ? कोरोना जैसी महामारी की परवाह न करते हुए , आम आदमी की जान जोखिम में डालते हुए बड़ी बड़ी रैलियां और रोड शो किये जाते रहे और सबसे हास्यास्पद बात यह कि आज जब चुनाव परिणाम आने लगे तब प्रधानमंत्री की ओर से कोरोना की समीक्षा करने की खबर आने लगी । जब देश में ऑक्सीजन की कमी से अस्पतालों में लोग अब तोड़ रहे हों , जब शमशान और कब्रिस्तान में मृत लोगों के अंतिम संस्कार की जगह श मिल रही हो और लोग पार्कों में संस्कार के लिए मजबूर होने लगे हैं तब आपको याद आई कोरोना के संकट की । इस सबके बावजूद आप के साथ ऐसी हुई कि हाथ से जन्नत भी गयी और खाली हाथ लौटे पश्चिमी बंगाल से । बाबुल सुप्रियो के हारने की खबर आ रही है जो सांसद में होने के बावजूद विधायक का चुनाव लड़ने उतर पड़े थे और ममता बनर्जी ने मजाक उड़ाते कहा था कि कल ये लोग पंचायत चुनाव या स्कूल बोर्ड चुनाव लड़ने आ जायेंगे।
केरल , असम और तमिलनाडु व पुडुचेरी में भी चुनाव हुए और परिणाम भी आज ही आ रहे हैं । तमिलनाडु में जयललिता के बाद उनका जादू खत्म हो गया और करूणानिधि के बेटे स्टालिन और कांग्रेस सत्ता में आ रहे हैं । शशिकला का दांव नही चला और रजनीकांत को राजनीति में आने से रोकना भी काम नहीं आया । जैसे कांग्रेस के लिए कहा जाता है , वैसे ही भाजपा के लिए कहा जा सकता है कि असम और पुडुचेरी जैसे राज्य जीत कर चाहे तो जश्न मना सकती है पर आत्म-मंथन की बहुत जरूरत है । आखिर जन कल्याण की क्यों नहीं सोची? कोरोना के चलते आदर्श आचार-संहिता की इतनी बड़ी उल्लंघना करने की क्या जरूरत थी ? ममता बनर्जी ने कहा था कि एक पैर से बंगाल और दो पैर से दिल्ली जीतेगी । अब घायल ममता ने जीत लिया ने पश्चिमी बंगाल और आगे की आगे देखी जायेगी । सबसे बड़ी बात कि ममता बनर्जी का करिश्मा जारी है जबकि यूपी में मायावती ने अपने आपको लगभग जनता से दूर कर लिया है । जयललिता रही नहीं ।।इस तरह तीन देवियों में से सिर्फ ममता बनर्जी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर दे रही हैं और उनके मंसूबों पर पानी फेर रही हैं । हालांकि ममता बनर्जी को भी अपनी नीति और रणनीति बदलने पर विचार करना होगा । फिर भी यही कहा जा सकता है कि जो जीता , वही सिकंदर