समाचार विश्लेषण/नफरत की बढ़ती दुनिया
-कमलेश भारतीय
राजस्थान के उदयपुर में जो घिनौना कांड हुआ , वह घोर निंदनीय है और मानवता को शर्मिंदा करने वाला है । आखिर किसी से विरोध के लिए हिंसा का रास्ता क्यों अपनाया जाये ? जंगलों से निकल कर हम बहुत साल पहले से आबादी में आ चुके हैं , फिर जंगलराज के तौर तरीके क्यों अपना रहे हैं ? माना कि नूपुर शर्मा ने टीवी डिबेट में पीर पैगम्बर को बुरा भला कहा , जिसकी सजा वह पा रही है । भाजपा ने उसे निलम्बित कर दिया है । इससे ज्यादा तो क्या सजा दी जा सकती है ? फिर यदि उसके समर्थन में उदयपुर के एक टेलर मास्टर ने कोई टिप्पणी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी तो उसकी जान ले लोगे क्या ? यही हुआ और दो युवक ग्राहक बन कर गये और गला रेत डाला । वीडियो भी बनाकर वायरल किया । अब सारे राजस्थान पर बन आई है । उदयपुर में धारा 144लगा दी गयी है । एक नये दोषारोपण का सिलसिला शुरू हो गया है राजनीतिक दलों में पर यह सिलसिला कहां थमेगा ?
कभी महात्मा गांधी को लेकर महिला सांसद टिप्पणी करती है तो कभी कंगना रानौत महात्मा को आजादी के हीरो न मान कर भीख में मिली आजादी बताती है और वह भी राजनीति में अपना पक्ष बता चुकी है । क्या ये कृत्य या बयानबाजी रोकने की जरूरत नहीं थी ? महात्मा गांधी के बजाय उनके हत्यारे को महिमामंडित करने वाले को रोकना नहीं चाहिए था ? हिंसा को लगातार बढ़ावा मिल रहा है । चाहे रेलगाड़ी में भैंस का मीट बेचने जा रही महिला पर ही भीड़ क्रुद्ध हो जाये या गौहत्याओं पर या साधुओं की हत्याओं पर भीड़तंत्र हो । न गौहत्या सही , न साधुओं पर हिंसा सही ठहराई जा सकती है । कभी नहीं । ये रास्ते कभी सही नहीं माने जा सकते लेकिन इन घटनाओं के बाद की हिंसा भी तो उचित कदम नहीं । हर तरफ असहिष्णुता बढ़ती जा रही है । हर वर्ग असंतुष्ट है । कभी किसान आंदोलन तो कभी अग्निपथ आंदोलन हिंसा है कि जारी है । यह कैसा समाज बना रहे हैं हम ? कभी आरक्षण को लेकर हिंसा तो कभी महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी विधायकों के आवासों या प्रतिष्ठानों पर हमले । यह सब क्यों ? इतनी हिंसा क्यों ? शांति का रास्ता क्यों छोड़े जा रहे हो ? एक टेलर मास्टर का गला रेत कर क्या मिला ? आखिर कब हम फिर से इंसानियत की ओर लौटेंगे ? राजनीतिक मनमुटाव अपनी जगह , विरोध अपनी जगह लेकिन यह जान ले लेने की वारदातें घोर निंदनीय हैं । ऊपर से नीचे तक इसका विरोध होना चाहिए । हाथी मेरे साथी का गाना याद आ रहा है :
नफरत की दुनिया को छोड़ के
प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।