कुलदीप बिश्नोई: कहां है किनारा रे
-*कमलेश भारतीय
आखिरकार मंडी आदमपुर के कांग्रेसी विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री चौ भजनलाल की राजनीतिक विरासत के झंडाबरदार कुलदीप बिश्नोई आज विधानसभा से इस्तीफा देंगे और कल भाजपा का कमल थाम लेंगे । हाथ को झटक कर आगे बढ़कर भाजपा मे शामिल हो जायेंगे । राज्यसभा चुनाव से शुरू हुई नाराजगी आखिर एक अंत तक पहुंचेगी । वैसे यह नाराजगी राज्यसभा चुनाव से पहले प्रदेशाध्यक्ष पद न दिये जाने से शुरू हुई थी और इसका अंत होगा आज जब कुलदीप बिश्नोई विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे । हालांकि नेता प्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि यह इस्तीफा तो राज्यसभा चुनाव के बाद ही दे देना चाहिए था लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर क्राॅस वोटिंग करने का मोह न छोड़ पाये कुलदीप बिश्नोई । नैतिकता की दुहाई अब बेकार है । यह भी कहा जा रहा है कि यह कुलदीप का तीसरा दलबदल है , जब से राजनिति में आए हैं । दो दो बार गठबंधन भी किये -भाजपा और बसपा के साथ लेकिन सबके सब हर्जाई, मैं लुट गया , राम दुहाई वाली बात होती रही और गठबंधन टूटते रहे । फिर एक समय अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय भी कर दिया लेकिन मन को शांति फिर भी न मिली । अंदर बेचैनी ही लगी रही । क्या करूं ? क्या करूं ? सोचते रहे । भव्य को लोकसभा का टिकट भी दिलवाया लेकिन बात न बनी बल्कि जमानत तक जब्त हो गयी बेटे की । रेणुका बिश्नोई भी हांसी से विधायक रहीं लेकिन कांग्रेस ने एक परिवार के दो लोगों को टिकट न दिया तो घर तक ही सीमित रहना पड़ा ।
राजनीति शतरंज के खेल से भी ज्यादा रोचक है और, क्रिकेट से भी ज्यादा रोमांचक । एक एक कदम कहां ले जाये , कब छक्का लग जाये या कब बाऊंड्री पर कैच हो जाये , कुछ कह नहीं सकते । अब कांग्रेस वाले कह रहे हैं कि कुलदीप के जाने से कोई नुकसान नहीं होने वाला और भाजपा के भीतर भी उतनी ही आशंका है कि कोई फायदा होगा या नहीं ? चौ बीरेन्द्र सिंह का अगला कदम क्या होगा ? उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला इसे कैसे देखते हैं ? सोनाली फौगाट क्या कदम उठायेगी ? कांग्रेस उपचुनाव की तैयारियों में कैसे उतरेगी और क्या कुलदीप बिश्नोई को कड़ी टक्कर दे पायेगी ? बहुत सारे सवाल हैं , जिन पर सोच विचार कर ही कुलदीप ने दलबदल का फैसला लिया होगा । कैसे पार पाना है ? कैसे चक्रव्यूह से निकलना है ? कुछ तो हिसाब किताब बिठाया होगा ?
एक गाने की पंक्ति याद आ रही है :
नदिया किनारा ...
हो मांझी रे ...
कहां है किनारा ...
हो माझी रे ...
क्या यह अंतिम दलबदल है ? या किनारा मिल ही गया है ? यह तो कुलदीप बिश्नोई ही बेहतर जानते हैं ,,,हम तो दुआएं दे सकते हैं कि यह अंतीम दलबदल हो ... और राजनीतिक तौर पर परिपक्वता के साथ आगे बढ़ें ...अभी यह भी पता नहीं कि चंद्रमोहन साथ देते हैं या नहीं ? कुलदीप बिश्नोई के इस एक कदम से हरियाणा की राजनीति पर क्या असर होगा ? यह देखना भी दिलचस्प होगा ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।