समाचार विश्लेषण/पश्चिमी बंगाल से लेकर संसद तक खेला होबे
-*कमलेश भारतीय
यह भी क्या कमाल है कि पश्चिमी बंगाल से लेकर संसद तक खेला होबे और अब तो ममता बनर्जी भी दिल्ली में खेला करने पहुंच चुकी हैं । खेला ऐसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की और कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी से भी मिलीं । खेला ऐसा कि संसद में हंगामा बरपने से राज्यसभा व लोकसभा को बीच बीच में स्थगित करना पड़ता है । कुछ सांसदों को निकाले जाने की तैयारी भी है क्योंकि इन्होंने कागज़ फेंके और सदन का अपमान किया । क्या संसद के मानसून सत्र में बच्चों की तरह कागज़ के जहाज उड़ाने आए हैं या कागज़ की कश्ती मानसून में छोड़ने की तैयारी है संसद में ? प्रतिदिन एक सत्र पर अढ़ाई लाख रुपये तक इस देश की गरीब जनता से टैक्स वसूलने के बाद इस तरह उड़ा दिये जाते हैं । क्यों ? संसद देश की सर्वोच्च पंचायत है और इसमें देश की जनता की समस्याओं पर गंभीर चिंतन होना चाहिए न कि हंगामा । बेशक आज भाजपा इस हंगामे के खिलाफ है जैसे हर पार्टी सत्ता में चिंतित होती है लेकिन विपक्ष कहां मानने वाला है ?
दूसरी ओर विपक्षी सदस्यों के साथ संसद के बाहर राहुल गांधी कह रहे हैं कि हम पेगासस , कृषि कानूनों और बढ़ती महंगाई के खिलाफ आवाज उठाना चाहते हैं लेकिन हमें अवसर नहीं दिया जाता । इसके बावजूद ममता बनर्जी का कोई सांसद इस विरोध प्रदर्शन में राहुल के साथ नही आया ।
जासूसी कांड पहले भी सरकारें करती आई हैं । हाल ही में राजस्थान में फोन टैपिंग का मामला उछला और सब जानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार गिरने के पीछे जासूसी कांड ही बताया जाता है । भाजपा ने हर तौर तरीका सीख लिया जिसके लिए कांग्रेस की आलोचना करते थे । सरकारें गिराना या गिराने में असफल होकर राष्ट्रपति शासन लगवाना । ये सब कांग्रेस के हथियार रहे जो भाजपा ने ज्यों की त्यों अपना लिए हैं । इससे लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा है । विपक्ष की बात सुनने या सदन में विपक्ष को अपनी बात रखने का मौका देना जरूरी है लेकिन अध्यक्ष पद जिस पार्टी की बदौलत मिले , उसके कर्ज चुकाने भी जरूरी हैं कि नहीं ?
कृषि कानूनों पर कितना कुछ रोज़ कहा जाता है देश के कोने कोने से लेकिन सुनता कौन है ? हर मौसम को सहते किसान दिल्ली के आसपास बाॅर्डर प बैठे हैं । महिला संसद भी चल रही है पर सुन कौन रहा है ?
महंगाई की बात करें तो आज हर देशवासी की रसोई में सबसे महंगा गैस सिलेंडर है । कोई इसे महंगाई नहीं मानता? पेट्रोल व डीज़ल के दाम भी सौ के पार जाने लगे हैं । इस आसमान छूती महंगाई पर स्मृति ईरानी अब कुछ नहीं कहतीं । क्यों कहां गयी वह रसोई गैस के साथ चूड़ियां फोड़ने क्यों नहीं आयीं ? विपक्ष एकजुट होगा और इन मुद्दों पर सार्थक बहस करेगा या सिर्फ बच्चों की तरह जहाज उड़ाते रहेंगे ?
(*पूर्व उपाध्यक्ष , हरियाणा ग्रंथ अकादमी)