समाचार विश्लेषण/बिहार में नीतिश की सरकार
विश्वासघात का खेल ही है राजनीति
-कमलेश भारतीय
बिहार में आठवीं बार जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिश कुमार मुख्यमंत्री बने तो भाजपा ने 'विश्वासघात दिवस' मनाया । अरे ! राजनितिक का खेल तो है ही विश्वासघात का खेल । फिर इसे घोषित करने से क्या फायदा ? वह बचपन की कहानी भूल गये क्या ? एक नेता जी के नन्हे से बच्चे ने कहा कि पापा, मुझे राजनीति सिखाइये । पापा ने बच्चे को कुछ ऊंचाई पर खड़ा कर वहां से नीचे कूदने को कहा । बच्चे ने कहा कि पापा , मैं कूदा तो मुझे चोट लग जायेगी । नेता जी ने बच्चे को विश्वास दिलाया कि मैं हूं न । मेरा विश्वास करो । मैं तुम्हे गोद में ले लूंगा । छलांग लगाओ बेफिक्र होकर । बस । बच्चे ने छलांग दी और पापा पीछे हट गये । बच्चे को चोट लगी और विश्वास भी टूट गया । उसने नेता जी से पूछा कि यह क्या किया ?
-राजनीति सिखाई तुम्हें और क्या किया ?
-यह कैसी राजनीति सिखाई ?
-यही तो है बेटे राजनीति का सबसे बड़ा सबक । राजनीति में अपने सगे बाप का भी विश्वास न करो । यही सच है ।
अब भाजपा के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को कौन समझाये कि राजनीति में विश्वास नाम की चिड़िया कब की उड़ चुकी थी जब आपने नीतिश कुमार को उपराष्ट्रपति नहीं बनाया । पहले विश्वास दिलाया और फिर विश्वास तोड़ दिया तो आप किस विश्वासघात की बात कर रहे हो ? अभी सुशील मोदी जी यह भी कह रहे हैं कि लालू यादव की बीमारी को देखते हुए नीतिश कुमार राजद को तोड़कर अपनी पार्टी को मजबूर करने की फिराक में हैं तो भाजपा भी तो यही कर रही थी -जदयू को कमज़ोर करने का खेल ही तो चल रहा था न, नीतिश कुमार की छवि भी धूमिल की जा रही थी ताकि सन् 2024 में प्रधानमंत्री मोदी को कोई चुनौती देने वाला मजबूत नेता न रहे । राहुल गांधी को भाजपा चुनौती नहीं मानती । उसका तो भाजपा आईटी सेल ने खूब दुष्प्रचार कर 'पप्पू' बना दिया है
जनता की नज़रों में । हालांकि नीतिश कुमार से जब पूछा गया कि क्या आप प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे ? उनका जवाब था कि मेरी कोई दावेदारी नहीं है लेकिन विपक्ष को मजबूत करेंगे । उन्होंने यह भी कहा कि सन् 2024 में हम रहें या न रहें लेकिन आप यानी मोदी जी नहीं रहेंगे । यह एक खुली चुनौती है भाजपा को जो खुद दूसरों को धोखा देती आ रही है । ताज़ा उदाहरण महाराष्ट्र है । जहां चुनाव के बाद शिवसेना ने सहयोगी के नाते आधा समय राज मांगा था लेकिन अजीत पंवार को तोड़कर आधी रात को देवेंद्र फडणबीस को शपथ दिला दी थी लेकिन यह खेल कुछ दिन ही चला और विश्वासमत लेना से पहले देवेंद्र फडणबीस को इस्तीफा देना पड़ा । बाद में कांग्रेस और एनसीपी के साथ अघाड़ी सरकार बनाई लेकिन फिर एकनाथ छिंदे ढूंढा और सरकार गिरा दी । यह किसके साथ विश्वासघात किया था ? या किसने किया था ? यह तो खेल ही विश्वासघात का है , इसमें विश्वास खोजने की कवायद बेकार है भाई ।
आपने बसपा सुप्रीमो को राजनीति में गूंगी गुड़िया बना दिया है और ममता बनर्जी को भी साध लिया है । आपने मध्यप्रदेश में सरकार गिराई तो महाराजा ज्योतिरादित्य को विश्वासघात के लिए तैयार किया कि नहीं ? आपने उत्तराखंड में सरकार गिराई तो विजय बहुगुणा ने विश्वासघात किया या नहीं ? असम में , मणिपुर में , गोवा में क्या विश्वासघात नहीं हुए ? फिर जो फसल बोयी थी , उसे काटने पर कैसा दुख ? बोये पेड़ बबूल के
आम कहां से होये ,,
भैया आम कहां से होये,,,
आपने ही राजनीति को यह नयी दिशा दी है तो इसे खुशी खुशी सहन करो,,,, स्वीकार करो ,,, यह नयी राजनीति है और यह आपने ही दिशा दी है इसको।
-*पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।