समाचार विश्लेषण/दिल्ली की सीमाएं ही नहीं दिल भी बंद है साहब
-*कमलेश भारतीय
सुप्रीम कोर्ट नाराज है क्योंकि किसान आंदोलन के चलते दिल्ली की सड़कें काफी लम्बे समय से घिरी हुई हैं प्रदर्शनकारियों से और आसपास के लोग , गांववासी सभी परेशान हैं और उनका जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है । इसका संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन सड़कें अनिश्चितकाल समय तक बंद नहीं कर सकते । इसलिए इसका हल दो सप्ताह के अंदर अंदर खोजें , निकालिए । यह बात संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बैंच ने कही । समाधान के लिए केंद्र सरकार को कुछ करना चाहिए । सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मोनिका अग्रवाल की याचिका पर दिया है । दो सप्ताह का समय हरियाणा सरकार को दिया गया है ।
बेशक लम्बे समय तक सड़कें या रास्ते बंद नहीं होने चाहिएं लेकिन क्या दिल्ली का दिल इतना छोटा है कि किसान आंदोलन को इतना लम्बा क्यों खिंचने दिया ? क्यों केद्र सरकार और हमारी हरियाणा सरकार पाबंदियां लगाने की ही योजनाएं बनाने में लगी रही ? कोई हल निकालने की कोशिश नहीं की गयी ? हरियाणा में हिसार , टोहाना , कुरुक्षेत्र और जगह जगह किसानों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस बल का प्रयोग ही नहीं किया गया बल्कि केस भी दर्ज किये गये जिनके चलते फिर प्रदर्शन हुए और केस वापस लिए गये व किसानों को रिहा किया गया । यह कैसी छुप्पन छुआई है सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच ? क्यों इतना श्रम किया जा रहा है ? इसका परिणाम क्या है ? केद्र सरकार ने भी कीलें तक राह में लगा दीं , हल खोजने का प्रयास नहीं किया । हरियाणा सरकार ने तो सड़कें तक खुदवा दी थीं ताकि ट्रैक्टर न जा सकें । राकेश टिकैत पर भिवानी में मास्क तक न लगाने का केस दर्ज किया गया जबकि हरियाणा के कितने भाजपा नेता रोज़ बिना मास्क के बैठकें करते हैं उन पर कोई कार्यवाही कभी नहीं होती । क्यों ? सारे नियम कायदे कानून सिर्फ आंदोलनकारी किसानों के लिए हैं या कोरोना इनसे ही फैलता है ? सोचने की बात है ।
किसान आंदोलन को लेकर केंद्र ने बातचीत के द्वार तक बंद कर लिये हैं ? क्यों ? बातचीत से ही हर समस्या का हल निकलता है और लोकतंत्र में विपक्ष से बातचीत करना जरूरी है ।।संसद का मानसून सत्र भी सूखा ही निकल गया । किसान आंदोलन पर कोई चर्चा न हुई । सुप्रीम कोर्ट को सर्वोपरि मानते हैं । इसके ऊपर हमारे देश में कोई पंचायत नहीं । तो साहब । आप भी कुछ सोचिए न ,,,
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।