सेवा भावना रखने वालों को संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं हैः डॉ. मार्कण्डेय आहूजा
महिला विवि में आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में किया निस्वार्थ भाव से सेवा का आह्वान।
खानपुर कलां, गिरीश सैनी। सेवा की भावना रखने वाले लोगों को संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। जीवन में एक बार भी अगर किसी के काम आ सके तो जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा। गीता तथा रामायण को उद्धृत करते हुए ये उद्गार प्रतिष्ठित नेत्र चिकित्सक, प्रेरक वक्ता एवं गुरुग्राम विवि के पूर्व कुलपति डॉ. मार्कण्डेय आहूजा ने व्यक्त किए।
डॉ. मार्कण्डेय आहूजा मंगलवार को भगत फूल सिंह महिला विवि तथा युवा एंड सेवा फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में "सेवा प्रबोधन" पांचवां वार्षिक अधिवेशन एवं व्याख्यान कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता महिला विवि की कुलपति प्रो. सुदेश ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में समाजसेवी धीरज लाठ उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। कुलपति प्रो सुदेश ने अंगवस्त्र एवं पौधा भेंट कर मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि का अभिनंदन किया।
मुख्य अतिथि डॉ. मार्कण्डेय आहूजा ने सर्वप्रथम भगत फूल सिंह की तपोस्थली को नमन करते हुए कहा कि यह भूमि सेवा भाव की जीवंत मिसाल है। अपने प्रभावशाली संबोधन में उन्होंने स्वामी विवेकानंद के जीवन का सार प्रस्तुत करते हुए युवाओं से सामाजिक सहभागिता की अपील की। उन्होंने नर सेवा ही नारायण सेवा के सिद्धांत को अपनाने का संदेश दिया। डॉ. मार्कण्डेय आहूजा ने महर्षि दधीचि द्वारा वज्र के लिए अस्थि दान का उदाहरण देते हुए कहा कि सेवा के कार्य आदिकाल से भारत की महान संत परंपरा का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने महर्षि रमण, संत तुकाराम, संत नामदेव, संत एकनाथ, राजा शिवी, राजा दिलीप, राजा रघु, राजा भगीरथ के प्रेरक जीवन प्रसंग उपस्थित जन के साथ साझा किए। अपने संबोधन में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महात्मा ज्योतिबा फुले व माता सावित्रीबाई फुले के अतुलनीय योगदान का उल्लेख भी किया। डॉ. मार्कण्डेय आहूजा ने कहा कि मैं का भाव समाप्त किए बिना किसी भी प्रकार की सेवा व्यर्थ है। निष्काम सेवा के लिए मन के अहंकार को त्याग दें। उन्होंने कहा कि सोच बदलने के लिए किसी न किसी सेवा कार्य से अवश्य जुड़ें और निस्वार्थ भाव से सेवा करें। उन्होंने एमएसएम आयुर्वेद संस्थान के भावी चिकित्सकों को करुणा भाव से सेवा करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने संबोधन के अंत में मनमोहक गीत “मधुबन खुशबू देता है” प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महिला विवि की कुलपति प्रो. सुदेश ने कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए युवाओं को अपने समय और ऊर्जा का सही उपयोग करना होगा। उन्होंने युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में ले जाते हुए उनके सकारात्मक और रचनात्मक योगदान की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सेवा के बाजारीकरण से बचने का सुझाव देते हुए कहा कि अपने मूल कार्य और सेवा में संतुलन बनाए रखें। कुलपति प्रो. सुदेश ने इस प्रेरणादायी व्याख्यान के लिए डॉ. मार्कण्डेय आहूजा का आभार व्यक्त किया।
विशिष्ट अतिथि समाजसेवी धीरज लाठ ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कारहीन शिक्षा का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने जरूरतमंद बच्चों के लिए शुरू किए गए निशुल्क कोचिंग सेंटर की जानकारी भी दी। कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. कुलदीप ने युवा एंड सेवा फाउंडेशन द्वारा शिक्षा और सामाजिक उत्थान के क्षेत्रों में जारी सेवा कार्यों की जानकारी दी। आयुर्वेद संस्थान की छात्रा आशा ने सेवा गीत प्रस्तुत किया। मंच संचालन डॉ. महेश शर्मा ने किया। डॉ नरेश भार्गव ने आभार प्रदर्शन किया। इस दौरान आयुर्वेद संस्थान के प्राचार्य डॉ. सत्य प्रकाश गौतम सहित विभिन्न विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक एवं छात्राएं मौजूद रही।