समाचार विश्लेषण/अब अफसरशाही और पत्रकार निशाने पर?

समाचार विश्लेषण/अब अफसरशाही और पत्रकार निशाने पर?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
 क्या अब अफसरशाही और पत्रकार सरकार के निशाने पर आ गये हैं ? पिछले दो चार दिन के समाचारों को देख/पढ़कर तो यही सवाल मन में उठ खड़ा हुआ है । चर्चित आईएएस अशोक खेमका की जांच करने की कार्रवाई शुरू हुई है । वही अशोक खेमका जो अरविंद केजरीवाल वाले ही आईआईटी के छात्र हैं और पचास से ऊपर तबादलों का रिकार्ड उनके नाम है । न वे व्यवस्था से समझौता कर पाये और न कोई  व्यवस्था उनसे कभी खुश हो पाई । एक किताब भी लिख चुके हैं अपने तबादलों को लेकर । अब उनके ही खिलाफ जांच के आदेश हुए हैं कि नियमों से दूर जाकर नियुक्तियों को पारित किया । अब अल्लाह जाने क्या होगा जी ...सारी उम्र तबादलों में गुजार कर क्या आखिर में कलंक का टीका लेकर जायेंगे अशोक खेमका अपने घर ? इससे अच्छा है त्यागपत्र दे दें । क्या रखा है अब बची अवधि में ? सिवाय सरकार का कोपभाजन बनने के ? सूटकेस में पैसे लेकर नौकरियां देने का आरोप का यह जवाब तो नहीं कि हम तो साथ सुथरे हैं , अफसरशाही ही खराब मिली तो क्या करें ? पर्ची खर्ची न लेने का उद्घोष इनकी ईमानदार छवि के नीचे दब रहा था तो यह जरूरी कार्रवाई कर डाली । अब साबित करते रहो कि मैं तो ईमानदार था । 

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने भी एक डीएम को सरेआम बैठक में पहले लताड़ा था और फिर तबादला किया था । एक आईएएस यह सपना लेकर बनता है कि देश की सेवा करूंगा लेकिन नेता लोग इतना दबाब बनाते हैं कि सारे सपने धरे के धरे रह जाते हैं । यह अशोक खेमका के साथ ही नहीं , कई अधिकारियों के साथ हो चुका है । अखिलेश यादव ने एक आईएएस महिला अधिकारी को कैसे अपमानित किया था , भूल गये ? हमारे दाढ़ी वाले बाबा ने फतेहबाद में आईपीएस महिला पुलिस कप्तान को कैसे कष्ट निवारण समिति में व्यवहार करने के बाद तबादला करवा दिया था ? भूल गये क्या ? बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ अभियान को क्या रूप दिया था ? 

इधर के समाचारों में पत्रकार भी निशाने पर आ चुके हैं । किसान आंदोलन के दौरान किसी आपत्तिजनक पोस्ट के आधार पर हिसार के तत्कालीन एसपी महोदय बलवान राणा ने रूद्रा कुंडू पर अपने ही मीडिया कर्मचारी की रिपोर्टे के आधार पर केस दर्ज कर लिया जो बार बार पत्रकारों की बैठकों के आज तक रद्द नहीं हुआ । राॅकी मित्तल जब तक सरकार के गुणगान गाता रहा तब तक सरकारी गाड़ी और वाह-वाह थी लेकिन जैसे ही कुछ नया सुर निकाला तो कैथल का छह साल पुराना केस जिन्न की तरह सामने आया और केस दर्ज हो गया । इधर जितेंद्र अहलावत पर केस दर्ज हुआ है । यह सिलसिला प्यार का बढ़ना दोनों पक्षों के लिए अच्छा नहीं । जब तक कोई दल विपक्ष में रहता है तब तक पत्रकार बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन सत्ता में आकर सरकार बनाने ही दोनों में दूरियां बढ़ने लगती हैं ।  कभी ओमप्रकाश चौटाला बयान देकर प्रेस कान्फ्रेंस में कहते थे मेरा अंगूठा लगवा ल्यो । सरकार को पत्रकारों के साथ लगातार बैठकें कर अपना पक्ष रखना चाहिए लेकिन केस दर्ज करना कोई हल नहीं है । पत्रकार अपना काम करते रहेंगे । करते रहे हैं । ऐसे ही अधिकारी भी काम करते रहेंगे । पत्रकार सरकार के आंख ,नाक और कान होते हैं । इन्हें बंद नहीं करना चाहिए । सबकी सुननी चाहिए । सबका साथ , सबका विकास तभी होगा । कितने मीडिया सलाहकार हैं , वे भी तो कोई राय दे सकते हैं कि नहीं ? चुप रहना खतरनाक होता है । आप सही राय सरकार को दीजिए । पत्रकारों को सम्मान दीजिए । केस रद्द कीजिए । मेरी छोटी सी सलाह है बिन मांगे । 
देर हो न जाये कहीं 
देर न हो जाये ....

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।