अब कांग्रेस सत्तर प्लस? 

अब कांग्रेस सत्तर प्लस? 

-*कमलेश भारतीय
हरियाणा विधानसभा चुनाव की दस्तक देने लगी हैं राजनीतिक पार्टियां।  लोकसभा चुनाव के परिणाम से कांग्रेस उत्साहित है और करनाल से कार्यकर्त्ता सम्मलेन शुरू कर दिये हैं और इसमें नारा दिया गया है-कांग्रेस सत्तर प्लस सीटें जीतेगी। याद है न आपको कि सन् 2019 में भाजपा ने नारा दिया था सत्तर पार लेकिन सुई अटक गयी चालीस पर और फिर बहुमत जुटाने के लिए जजपा और निर्दलीयों का सहारा लेना पड़ा था। उसी जजपा ने सहारा दिया जो कह रही थी कि सत्तर पार वालों का दावा करने वालों को यमुना पार कर देंगे। हरियाणा की जनता ने नयी नयी पार्टी की बातों पर विश्वास कर दस सीटें दे दीं और वही पार्टी भाजपा से हाथ मिलाकर सत्ता में भागीदारी के लिए आगे आ गयी। इस तरह लोकसभा चुनाव में जनता ने इस पार्टी को वादाखिलाफी का सबक सिखाया जब इसके एक भी प्रत्याशी को सफलता नहीं मिली। अब विधानसभा चुनाव में भी क्या जजपा के साथ जनता यही करने जा रही है या फिर इसका गुस्सा उतर गया होगा ? यह देखना दिलचस्प रहेगा। इनेलो को भी लोकसभा चुनाव में कोई सफलता हाथ नहीं लगी जबकि राहुल गांधी की तरह अभय चौटाला ने भी परिवर्तन यात्रा की थी लेकिन इस परिवर्तन यात्रा से इनेलो की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। अब बारी विधानसभा चुनाव की है। इसमें देखते हैं कि इनेलो की स्थिति में कुछ परिवर्तन होता है या नहीं? अभी तो इकलौते अभय चौटाला ही इनेलो के विधायक हैं जबकि जजपा के दस विधायक इसके साथ नहीं हैं । खुलेआम जजपा के विरोध में बयानबाजी करते रहे लोकसभा चुनाव में। यही नहीं पूर्व मंत्री देवेंद्र बबली ने तो सिरसा से कांग्रेस प्रत्याशी सुश्री सैलजा के हक में प्रचार भी किया और अभी सांसद बनने के बाद सैलजा भी उनके कार्यालय में चाय पीने गयीं। ‌इसी प्रकार बरवाला से विधायक जोगीराम सिहाग ने भाजपा प्रत्याशी को सहयोग देने की अपील की थी। रामकुमार गौतम ने जनता पर वोट का फैसला छोड़ दिया था। ऐसी हालत में जजपा किन नेताओं पर दांव लगायेगी? चौटाला परिवार के चार सदस्य लोकसभा चुनाव में हार गये, बेशक वे अलग अलग दलों से मैदान में थे लेकिन चौटाला परिवार की साख तो कम हो गयी न। अभी चर्चा है कि चौ रणजीत सिंह को भाजपा राज्यसभा में भेजने पर विचार कर सकती है क्योंकि दीपेन्द्र हुड्डा के सांसद चुने जाने पर राज्यसभा सीट खाली होने जा रही है। देखिये क्या होता है, फिलहाल तो हार के चलते मत्री पद पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। 
अब तक कांग्रेस की ओर से भाजपा को इवेंट मैनेजमेंट पार्टी कहा जाता रहा है तो क्या अब कांग्रेस भी उसी तरह सत्तर प्लस के नारे से मैदान में जायेगी? 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी