समाचार विश्लेषण/अब छिड़ी चौ देवीलाल के वारिसों में जंग
-कमलेश भारतीय
चौ देवीलाल के चर्चे और जलवे कभी कम नहीं रहे । सन् 1987 का जलयुद्ध और क्रांतिकारी रैलियों ने उन्हें जननायक बना दिया और वे प्रचंड बहुमत से विधानसभा चुनाव जीते । सबसे मात्र एक वोट और एक रूपये के नारे ने सबको चित्त कर दिया । फिर कहा-लोकराज, लोकलाज से चलता है और चलाया भी । बीच राह में गाड़ी रोककर आम आदमी से बतलाने और हालचाल पूछने की राजनीतिक कला चौ देवीलाल ने ही शुरू की , जिसे बाद में सभी नेताओं ने अपने अपने तरीके से लागू किया । वृद्धावस्था पेंशन इसी सीधे संवाद से निकली योजना थी । इसे हरियाणा की हर सरकार जारी रखे हुए है और वृद्धि भी किये जा रही है । पूर्ण बहुमत होने के बावजूद राज्यपाल द्वारा विधायकों की परेड करवाये बिना किसी दूसरे को अवसर देने पर गुस्से में उनकी ठूड्ढी पकड़ लेने का साहस कोई सच्चा नेता ही कर सकता है । कितने किस्से हैं चौ देवीलाल के ।
मैं जब सन् 1997 में हिसार आया दैनिक ट्रिब्यून की ओर से तो चौ देवीलाल जी के साथ कितनी रैलियों की कवरेज करने एक ही गाड़ी में होता उनके साथ । वे मज़ाक में कहते -कवरेज बढ़िया करना । पर बढ़िया कवरेज से भी क्या होगा ? तुम्हारा नाइट एडिटर खबर पर कैंची चला देगा । मैं हंस कर रह जाता । एक बार प्रो सम्पत सिंह की धर्मपत्नी कृष्णा सम्पत सिंह ने अपने आवास पर अचानक बुलवाया । कारण-चौ देवीलाल जी आए हैं । आप चाहो तो इंटरव्यू कर लो । मैं और दि ट्रिब्यून के विमल सुम्बली गये पर उनकी बातें समझने व सुनने में दिक्कत आ रही थी । पर भाभी कृष्णा सम्पत जी ने यह जिम्मेवारी भी संभाली और हमें उनकी बातें ध्यान से सुन कर बताने लगीं । इस तरह इंटरव्यू पूरा हुआ और प्रकाशित भी हुआ । दूसरे दिन चौ देवीलाल हंस कर बोले-इस बार नाइट एडिटर हार गया । तुम्हारी पूरी इंटरव्यू आई है । ऐसे मज़ेदार थे चौ साहब ।
खैर । वे उप प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे । चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे । जैसे कि उनके बेटे व पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला कहते हैं कि मेरे बाबू को बड़े नेताओं ने भुला बहला लिया । इसलिए वे पीछे हट गये और विश्वनाथ सिंह प्रधानमंत्री बन पाये ।
अब जंग छिड़ी है चौ देवीलाल की विरासत की । जंग न छिड़ती यदि इनेलो के बंटवारे के बाद जजपा का गठन न किया होता अजय चौटाला ने । गठन हुआ और अब जजपा व इनेलो दो दल हैं और दो दिल हैं । दो दिल इक जान नहीं बल्कि जानी दुश्मन । अभय चौटाला ने किसान आंदोलन के चलते विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और अब उप चुनाव निश्चित है । इसी उप चुनाव से पहले जंग शुरू हो गयी चौ देवीलाल की विरासत की । अभय चौटाला का कहना है कि ऐलनाबाद में पता चलेगा कि कौन है देवीलाल का असली वारिस । दूसरी ओर दिग्विजय चौटाला कह रहे हैं कि वे यानी हमारे चाचा वारिस बनने के भूखे और हम जुटे चौ देवीलाल के सपने पूरे करने में । चौ देवीलाल अपने आप में एक संस्था थे । जजपा तो चौ देवीलाल की नीतियों पर चल रही है और उनके सपनों को पूरा कर रही है । वैसे विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान चर्चा में हिस्सा लेते हुए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रघुवीर कादयान ने भी चौ देवीलाल की आत्मा को याद दिलाने की कोशिश की थी । अभय चौटाला तो यहां तक कह रहे हैं कि भाजपा जजपा विधायकों की गांवों में एंट्री ही बैन है । इसके साथ ढेर सारे आरोप लगाये हैं । जैसे जैसे ऐलनाबाद का उप चुनाव नजदीक आता जायेगा वैसे वैसे यह कटुता बढ़ेगी । पर बहुत दुखद है एक परिवार का इस तरह अलग थलग हो जाना ।