पिता की पुण्यतिथि पर: पिता को याद करते हुए
आज की ही तरह
धुंध में लिपटा और सर्दी में
कंपकपाता एक दिन था
बस्ता लेकर मैं स्कूल में था
जब कोई मुझे बुलाने आया ।
घर पहुंचा तब तक आप विदा हो चुके थे
मुझे जीवन की पाठशाला
और संबंधों के जंगल में
अकेले छोड़ कर , ,
जंगल में रास्ता तलाशता
एक बेटा इतनी दूर निकल आया कि
वह सारा बचपन खो बैठा
आप हर सुबह पहले गीता बांचते
फिर गांव जाने की तैयारी में
साइकिल , जूते खूब चमकाते
यानी मन की सफाई करते
और बाहर की भी ,,,,,,
फिर आप तैयार होते
एक अच्छा दिन बिताने के लिए
बरसों बीत गए
आप गांव से लौटे नहीं
और न किसी ने दीपावली पर
हाथ पकड़कर मिठाई पटाखे दिलवाए
मेरी पढ़ाई की फिक्र में आप स्कूल आते
पर फिर नहीं पूछा कि किस हाल में हूं ?
सच
मेरे सपने में जब भी आप आते हो
मैं यही विनती करता हूं
लौट आओ न पिता ,,,
मुझे मेरा बचपन दे दो
आप थे तो बचपन था
आप थे तो किसी चीज़ के लिए
रूठना और मचलना अच्छा लगता था
कितने मेलों में कितनी बार
दिलाए थे खिलौने
अब जीवन ही खिलौना
बन कर रह गया
अब आप नहीं हो
तो बचपन कहां ?
खो गया
जीवन की पाठशाला
और संबंधों के जंगल में
आज की तरह वह एक
धुंध में लिपटा दिन
बहुत याद आता है
पिता आप भी ..
-कमलेश भारतीय